कटि स्नान
कटि-स्नान को घर्षण स्नान, पेडू नहान, उदर स्नान तथा अंग्रेजी में फ्रिक्शन हिप बाथ व् केवल हिप बाथ भी कहते हैं | पेडू का यह स्नान चूकि घर्षण युक्त होना आवश्यक है, इसलिए इसे घर्षण कटि-स्नान भी कहते हैं |
विधि – तकियादार टब लेकर उसमें इतना पानी डालिए कि उसमें बैठने पर वह जंघों और नाभि तक पहुँच जाए, पानी का तापमान 55 डिग्री से 84 डिग्री फारेनहाइट तक होना चाहिए | जल को यदि अधिक ठंडा करना हो तो उसे मिटटी के घड़े में रख कर, कर सकते हैं | इस स्नान का पानी यदि मृदु हो तो ठीक रहता अहि | बर्फ या बर्फ के समान शीतल जल का प्रयोग इस स्नान में कभी नहीं करना चाहिए | केवल स्नान के जल की गर्मी शरीर की अपेक्षा थोड़ी कम होनी चाहिए | केवल पहले-पहल अधिक ठंडा जल में कटि-स्नान करना कभी ठीक नहीं होता और दो-तीन दिन मामूली ठंडे जल या श्म्शेतोषण जल में स्नान करने के बाद ही क्रमश: अभ्यास के मुताबिक ठंडे का प्रयोग करना ठीक रहता है | परन्तु ज्वर की हालत में ह्मेश्सा पहले दिन से ही ठंडे जल का प्रयोग करना आवश्यक है |
टब में निर्वस्त्र होकर बैठने के पहले यह भी जरूरी है कि नाभि के निचले भाग (पेडू) को थोडा गर्म कर लिया जाए | यह काम पेडू की सुखी मालिश करके आसानी से हो सकता है | यह सब तैयारी करके स्नान के लिए टब में आराम से बतिहे के बाद अपने दहिने हाथ में एक छोटा तौलिया, खदर का अंगोछा या रोएं दार तौलिया चार ठ करके लीजिए और उसे पानी से टार करके पेडू के ऊपर दाहिनी ओर एकदम नीचे रखते हुए वहीँ से पेडू की यानि नाभि के सरे निचेल भाग को अर्द्धचंद्रकार में दाई और बाई ओर ऊपर से नीचे की और फौरन और जल्दी-जल्दी बिना रुके एक कांख से दूसरी कांख तक रगड़ना आरम्भ कर दें | पेडू की दाहिनी ओर एकदम नीच से रगड़ना आरम्भ करते हुए नाभि के कुछ ऊपर तक ले जाकर दूसरी ओर से फिर नीचे रगड़ना चाहिए | इस घर्षण कटि स्नान के लिए पेडू को इसलिए चुना गया है क्योंकि पेट में इसी भाग में हमारी आंतें स्थित होती हैं, जिनमें समस्त शरीर का मल निचुड़ कर संचित होता रहता है | इस मन निष्कासन के कार्य को आसान और सरल बनाकर आँतों और गुर्दे को निर्देश और निर्मल बनाने के लिए पेडू के घर्षण का स्नान से बढ़कर कोई दूसरा साधन नहीं है | शरीर को बिना किसी प्रकार की क्षति पहुंचाए पेडू का यह घर्षण स्नान बड़ी आसानी से कोष्ठों तक साफ़ कर देता है, जिससे लगभग सभी प्रकार के रोगों की जड़ कट जाती है |
जब तक शरीर ठंडा न हो जाए अथवा जब तक स्नानस से आराम मिलता रहे तब तक स्नान तब में रहने देना चाहिए | आरम्भ में 5 से 10 मिनट तक का कटि स्नान काफी होता अहि | फिर यह दो-तीन दिनों के बाद एक-एक या दो-दो मिनट बढ़ाते जाना चाहिए | दस मिनट तक पहुँच कर कम से कम दस दिन आगे नहीं बढ़ना चाहिए | उसके बाद समय को बढ़ाकर 30 मिनट कर सकते हैं, अधिक से अधिक 30 मिनट काफी है | सर्दी में यह स्नान 5 मिनट से प्रारम्भ कर अधिक से अधिक 10 मिनट तक करना चाहिए | अधिक बूढ़े, निर्बल और छोटे बच्चों को यह स्नान कुछ ही मिनटों अर्थात एक से 5 मिनट तक ही देना चाहिए | टब से निकलने वक्त पैरों को पानी से बचाना चाहिए |
कटि-स्नान के बाद पूर्ण स्नान या बदन पौंछना हो जाने पर समस्त शरीर को किसी सूखे तौलिए से पौंछकर कपड़े पहन लेना चाहिए और तत्काल शरीर को गरम करके का प्रयत्न करना चाहिए | इसके लिए खुली हवा में हल्का व्यायाम, टहलना या हलकी सुखी मालिश आदि करना चाहिए | कमजोर असाध्य रोगी विस्तार पर लेटकर, कम्बल या रजाई ओढ़कर गर्म हो सकता है |
कुछ जानने योग्य बातें
- यह स्नान प्रतिदिन दो-तीन बार तक किया जा सकता है, ज्वर में यह स्नान तीन-चार बार किया जा सकता है | स्नान के 3-4 घंटा पहले तथा 1 घंटा बाद तक भोजन नहीं करना चाहिए |
- जाड़ों में इस स्नान के दो घंटे बाद या पहले तथा गर्मियों में | घंटा बाद या पहले साधारण दौनिक स्नान करना चाहिए |
- ऋतुमती स्त्री को साधारणत: 4 दिनों तक यह स्नान नहीं करना चाहिए |
- कटि स्नान करने के तुरंत बाद एनिमा लिया जा सकता है पर उसके कम से कम दो घंटे बाद लिया जाए तो ठीक रहता है |
स्नान के दिनों में प्राकृतिक आहार पर रहना और खान-पान, रहन-सहन आदि अन्य प्राकृतिक नियमों का पालन करना नितान्त आवश्यक है |
- पेडू पर मिट्टी बाँधने के बाद कटि स्नान लेना अधिक लाभ करता है | उपवास के दिनों में यह स्नान लेना चाहिए |
कटि स्नान से लाभ
कति स्नान पेट को साफ़ करने के साथ-साथ यकृत, तिल्ली एवं आँतों के रसस्त्राव को भी बढ़ाता है | जिससे रोगी की पाचन-शक्ति में आसाधारण वृद्धि हो जाती है |
अजीर्ण, पेट की गर्मी , मंदाग्नि, आँतों में सडान्ध अदि उदार सम्बन्ध जुकाम नहीं लगता, मिर्गी, रक्तचाप, हृदय रोग, अनिद्रा, मासिक धर्म की गड़बड़ी से होने वाले रोगों के लिए बहुत उपयोगी है |