अच्छे स्वास्थ्य के लिए
शरीर का सोधन या दोषों को बाहर निकालने के प्रक्रिया पंचकर्म है, जिसमे शरीर के बाह्य तथा आंतरिक विकारों को निकालने के लिए सरल उपाय होते है जिससे शरीर सुध हो जाता है | इससे पुनः रोगोत्पत्ति की संभावना नही होती | जिस प्रकार मैला वस्त्र ठीक प्रकार धोने से स्वच्छ एवम् उज्ज्वल हो जाता है, उसी प्रकार पंचकर्म से मानसिक वृद्धि होत्री है | आयुर्वेद में स्वस्थ मनुष्य में रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि होती है | आयुर्वेद में स्वस्थ मनुष्य के संबंध में कहा है-
समदोष: स्म्ग्निस्च समधातु मल्क्रिय: |
प्रसन्नात्मेंद्रिय्मं: स्वस्थ इत्र्यभ्धीय्ते ||
अर्थात जिसमे तीनो दोष- वात, पित्त, कफ सम हो, जठराग्नि सम हो, धातु और मलों का कार्य यथोचित हो और इन कारणों से जिसकी आत्मा, मन तथा इन्द्रियां प्रसन्न होती है, वह स्वस्थ मनुष्य कहलाता कहलाता है |
शरीर में विकार्रों का जन्म, चयापचय की क्रिया तथा असंतुलित आहार और विहार से होता है | पंचकर्म द्वारा दोषों को सम तथा विकारों को दूर कर कायाकल्प से नई स्फू
र्ति का जन्म जोटा है |
पंचकर्म के पूर्व स्नेहन तथा स्वेदन क्रिया से रोगी को आशातीत लाभ होता है | यह स्नेहन बाहिय तथा आंतरिक दो प्रकार का होता है | बाह्य स्नेहन को मालिश के नाम से भी जाना जाता है | इसमें रोगी को प्रकृति के अनुसार च्न्दन्व्ला, क्षिर्बला, महानारायण, नारायण आदि तेलों से मालिश आदि करनी होती है | यह शारीरिक रुक्षता, त्वचा की विवर्णता, त्वचा का फटना आदि को दूर क्र त्वचा को स्थिन्ग्धता प्रदान कर उसमे नई क्रांति का संचार करती है | इससे मेदोरोग तो दूर होता ही है | साथ ही शरीर के असंतुलित उत्तकों में एकरूपता आती है, साथ ही कोष्ठ तथा अन्य स्त्रोतों की सुधि भी हो जाती है |
बाह्य स्नेहन में पिलिचिली तथा शिरोधरा का भी उल्लेख है | पिलिचिली एक प्रकार की विशिष्ट अभ्यंग की केरलीय पद्धति है | जिसमे लकड़ी के बने एक द्रोणी नामक यंत्र में मनुष्य को लिटाकर अभ्यंग कराया जाता है | यह शरीर के प्रत्येक उत्तकों, धातुओं में तेल प्रविष्ट कर रक्त, साँस, मेद, अस्थि तथा मज्जा आदि धातुओं को परिपुष्ट करता है | इससे आमवात, कम्पवात, संधिवात तथा पक्षाघात जैसे रोगों में बहुतायत लाभ होता है | इसी प्रकार शिरोधारा प्रक्रिया में औषधीय तेलों की अखंड धरा को सर से प्रवाहित किया जाता है | जो ब्र्ह्मर्न्ध्रों से होती हुयी स्नायुम्न्द्ल में पहुंचकर चित्त को शांत तथा इन्द्रियों को निर्मल बनाती है | इससे मानसिक तनाव, अनिंद्र, बैचानी, उन्माद, चित्त्विभ्र्मत्ता उच्च रक्तचाप, ह्र्द्याव्सत जैसे रोगों पर नियन्त्रण होता है | साथ ही व्यक्ति में सोचने की क्षमता तथा स्मरण सकती भी उत्तम हो जाती है | वैज्ञानिक सर्वेक्षणों से यह भी ज्ञात हुआ है की ब्रेन ट्यूमर जैसे रोगों में ऑपरेशन के बाद या पहले भी शिरोधारा में काफी लाभ देखा गया है |
इसके पश्चात रोगी को संवेदन कराया जाता है | यह संवेदन ओषधीय द्रव्यों के क्वाथ की वाष्प सारे शरीर में प्रवाहित की जाती है जिससे शरीर में लाव्न्य्य तथा नई आभी का जन्म होता है | वमन क्रिया एक प्रकार की वामेतिंग प्रणाली | जिसमें क्रमश: कफ, पित्त और वायु को निकालना होता है | इससे ह्रदय, मस्तिष्क और इन्द्रियों के मार्ग शुद्ध होते है तथा शरीर में लघुता आती है | जिससे श्वास, कांस, हृद्शुल, आदि की शिकायत नही रहती |
वमन के पश्चात विरेचन कराने की एक क्रिया है | इसमें मंदाग्नि, आदि रोगों से पीड़ित मनुष्य स्वस्थ हो जाता है तथा सभी प्रकार के उद्दर रोग नष्ट हो जाते है |
वस्तिकर्म क्रिया कफ, पित्त, वायु, परीश सभी को खींचकर बाहर निकालती है | यह वस्ती दो प्रकार की होती है जो आस्थापन तथा अनुवासन कहलाती है | आस्थापन वस्ति में मधु लवण, सरसों, वच, इलायची, चन्दन, तगर, देवदारु, निशोध आदि द्रव्यों के क्वाथ को गुदा मार्ग से देते है | आस्थापन वस्ती के बबाद सोंठ के चूर्ण को गर्म जल के साथ देना चाहिए | भूख लगने पर हल्का भोजन चावल का पानी, खिचड़ी, फल, गर्म सूप आदि हल्का भोजन देना चाहिए |
अनुवासन वस्ती तेल आदि स्निग्ध पदार्थों को गुदामार्ग से अंदर पहुचाया जाता है| इसका प्रयोग बहुत ही कम होता है |
न्स्यक्र्म ग्रीवा के ऊपर के भागों के रोगों को दूर करने के लिए बहुत ही उपयोगी होता है | इससे पुराने से पुराना जीर्ण प्रतिश्याय साईंनस आदि रोग ठीक होते हैं | नेत्र रोगों में भी नासिका द्वारा दी गयी ओषधि विशेष गुणकारी होती है जिसमे श्द्विंदु तेल, अनुतेल का प्रयोग शिरशूल, प्रतिश्याय आदि के लिए तथा बकरी के दूध के साथ सोंठ पीसकर नस्य के रूप में दिया जाता है | इस प्रकार यह पंचकर्म की क्रिया सात दिन से लेकर 15 दिन एक मास तथा रोगी किए बलबल के अनुसार त्थास्थिथि बढ़ाइ जा सकती है |
इससे जीर्ण से जीर्ण रोगियों में वातव्याधि, कम्पवात, प्क्सघात, स्र्वाग्वत संधिवात, मोटापा, आदि रोगों में विशेष लाभ होता है | इसके लिए शीतऋतू सर्वाधिक श्रेष्ठ होती है |
पंचकर्म के परिणामों तथा वैज्ञानिकता को देखते हुए इसके प्रचारप्रसार की दशा में भारत में ही नहीं, अपितु विदेशों में भी पंचकर्म केंद्र स्थापित हैं, जिसमें 1988 में पश्च्मी जर्मनी में रुकनी कुलम यूनिवर्सिटी में डॉक्टर आर. वार्ल्डस्मिथ द्वारा इसका विस्तृत अध्ययन किया गया था| इसके अतिरिक्त होलैंड, अमेरिका, जापान आदि विभिन्न देशों में महर्षि पंचकर्म सेंटर स्थापित है | वर्तमान में भारत में दिल्ली में भी विभन्न पंचकर्म सेंटर स्थापित किये गए है | जिसमें महर्षिनगर, नोएडा तथा पूर्वी दिल्ली के अतिरिक्त पश्चिमी दिल्ली में शालीमार बाग़ में महर्षि आयुर्वेद आरोग्यधाम में उत्तम टेक्निक से विभन्न अंगों से संबंधित विभाग खोलकर पुरुष एवं महिला आवासीय पंचकर्म विभाग स्थापित किया गया है | इसके अच्छे परिणाम देखने को मिले है |