राल (तार्पीन)
संस्कृत नाम – सर्जरस
यह पौधा, पहाड़ी क्षेत्रों की तलहटी में पैदा होता है | इसका जन्म प्राकृतिक रूप से होता है | इसकी तासीर ठंडी और स्वाद कड़वा होता है | राल में मिश्री मिलाकर खाने से अतिसार रोग दूर होता है |
प्रदर रोग में इसका लेप किया जाए अथवा इसके रस को पिलाया जाए तो रोग से मुक्ति मिलती है | इसके तेल को तर्पीन का तेल कहते हैं | इस तेल की मालिश निमोनिया-रोगी के सीने पर की जाए तो वह रोग मुक्त हो जाता है | पसल्लियों के दर्द में भी यह तेल बहुत उपयोगी है |