आदत बुरी बला
निंदा का परिणाम है अनुताप | अकृत के प्रति दुष्कृत के प्रति जब अनुताप पैदा होता है तो मूर्च्छा का चक्र टूटता है | कोई भी आदमी गलत काम मूर्च्छा के कारण करता है | जैसे ही मूढ़ता टूटती है सही आचरण और सही व्यवहार होने लग जाता है | जैसे ही मूढ़ता टूटती है, सही आचरण और सही व्यहार होने लग जाता है | मोह और मूढ़ता के कारण अपने दुष्कृत का समर्थन होता है और फिर मोह का चक्र तुत्थ है और फिर मोह का चक्र बढ़ता जाता है | जैसे ही यह निंदा का भाव और अनुताप का भाव जगा, मूर्छा की जड पर प्रहार होता है और ऐसे प्रहार होता है की मूर्छा को बल नहीं मानते | मूर्छा को वे ही तौड सकते हैं जिनमे इतनी सकती है की अपनी भूल को भूल के रूप में स्वीकार क्र सकें और उसके लिए खेद का अनुभव कर सकें | वे सुचमुच मूर्छा पर प्रहार करने वाले लोग हैं| मूर्छा में आदमी समझ नही पाता है कि क्या करना है और क्या होना है | कभी कभी बड़ा भ्रम हो जाता है |
भिखारी आया | दरवाजा बंद था | आवाज दी कि अंदर से कुछ रोटी मिलनी चाहिए| कोई उत्तर नही आया तो फिर आवाज की की बीबीजी ! कुछ रोटी मिलना चाहिए| भीतर से आवाज आई – अंदर बीबी नही है | भिखारी ने कहा- मुझे बीबी नही रोटी चाहिए |
सच्चाई को नही समझा जा सकता | बीबी की जरूरत नही है जरूरत है रोटी की | जरूरत है अनुताप की | भीतर से अनुताप निकलेगा तो मोह टूटेगा, आदत बदलेगी | मूर्छा नहीं टूटेगी तो आदत नहीं बदलेगी | आदत को हम लोग ही तो पाल रहे हैं | यह बेचारी आई कहाँ से ? हमने ही तो जन्म दिया और हम लोग ही तो पाल रहे हैं |
भाव बदलना चाहिए, हमारी आदतों में परिवर्तन आना चाहिए, यदि कोई परिवर्तन नहीं अत है तो फिर किया तो क्या और नहीं किये तो क्या ? खाने पर भूख नहीं मिटती है तो फिर खाने का अर्थ ही क्या है ? ऐसे काम ही क्यों करें ? कोई काम करें चाहे अच्छा काम या बुरा काम, जिससे की दूसरों को पता चले की अच्छा काम किया है या बुरा काम किया है | अच्छा ही तो भी पता होना चाहिए और बुरा हो तो भी पता होना चाहिए | यदि पता न लगे तो अची भी बेकार और बुराई भी बेकार | अच्छा काम करें और कोई उसे अच्छा न खें तो मजा नहीं आता | घर पर गए और दूसरों को भी परिवर्तन हिन् लगा तो फिर करने का अर्थ कम हो जाता है | बदलना चाहिए, बदलना भुत जरूरी है | हमारा ध्यान कोई आकाश में उडनें के लिए नहीं है, तुम धान करो और आकाश में उडो | आज तो विज्ञानं ने ऐसे चमत्कार पैदा क्र दिए है की किसी भी चमत्कार की साधना करने की आवश्यकता नहीं है | दुनिया का सबसे बड़ा चमत्कार है अपनी आदतों को बदलना | वह दुनिया का सबसे बड़ा व्यक्ति है |
आज समाज में बेमानी, अनेतिकता, अप्रमाणिकता और कितने गलत व्यवहार चल रहे हैं, उन्हें कैसे बदला जाए ? यह एक अहम प्रश्न है | मुझे लगता है, केवल वाचिक प्रयत्नों के द्वारा उनमे परिवर्तन आ सके मुझे संभव नहीं लगता | संभव क्या, 100 वर्ष भी हम प्रयत्न करते जाएं तो रहेंगे जहाँ के तहाँ आगे नहीं बढ़ पाएंगे | हम अभ्यास ही न करें, चले ही नहीं तो पहुंच ही नहीं पाएंगे | निश्चित हमे अभ्यास करना पड़ेगा| जितनी समस्याएं हैं, बे सारी चंचल मन की समस्याएं हैं | उन्हें बदला जा सकता है | आज हिन्दुस्तान के लिए बहुत जरूरी है की अभ्यास पर बल दिया जाएं अभ्यास की बात को आगे बढाया जाए | शब्द सुनते सुनते तो कान थक गए | कितनी बार सुना ? अब अभ्यास आवश्यक है |