भूख का लगना
भूख शरीर की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है | भूख शरीर में वह रासायनिक बोध है जो हमें स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थों को ग्रहण करने के लिए प्रेरित करती है | शरीरिक क्रियाओं के सुसंचालन के लिए शरीर विभिन्न पोषक पदार्थों की मांग करता है और भूख रासायनिक बोध के रूप में इस मांग को पूरी करने में शरीर की मदद करती है | अगर हमें भूख का बोध नहीं हो तो हमारा शरीर भोजन करेगा ही नहीं | अधिकांश व्यक्ति भूख का सम्बन्ध खाली पेट से जोड़ते हैं | परन्तु शरीर-शास्त्रियों के अनुसार खाली पेट का भूख से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है | बीमारी की स्थिति में खाली पेट होने के बावजूद हमें कई दिनों तक भूख नहीं लगती | इसी प्रकार बच्चा पैदा होने के बाद नवप्रसूता को भूख का अनुभव नहीं होता | चिन्ता, तनाव, शोक की स्थिति में भी ऐसा ही होता है |
शरीर वैज्ञानिकों के अनुसार शारीरिक क्रियाओं में खर्च होने वाली ऊर्जा हमें रक्त में मौजूद पोषक तत्वों से मिलती है | जबिस पोषक तत्वों की मात्र में कमी आती है तो यह सुचना मस्तिष्क के पार्शव हिस्सों में स्थित ‘क्षुदा केन्द्र, तक पहुंचती है | क्षुधा केंद्र पेट और आँतों को क्रियाशील बना देता है और हमें भूख का अनुभव होता है | बीमारी की स्थिति में भूख नहीं लगती क्योंकि उस दौरान शरीर विश्राम में होने के कारन उर्जा की कम मात्रा खर्च होती है और यह उर्जा शरीर में संचित प्रोटीन्स से मिल जाती है | यही कारण है कि तेज बुखार या बीमारी की अवस्था में व्यक्ति को कई दिनों तक भूख का अनुभव नहीं होता |
भूख के रासायनिक बोध में मस्तिष्क के क्षुधा केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है | दरअसल क्षुधा केंद्र आमाशय और आँतों पर एक ब्रेक के समान कार्य करता है | जब रक्त में पर्याप्त मात्र में पोषक तत्व होते हैं तो क्षुधा केंद्र धीमें रूप में कार्य करता है लेकिन जैसा ही पोषक तत्वों की मात्रा में कमी आती है, आमाशय व् आँतों को अत्यधिक सक्रीय कर देता है और हमें तेज भूख का अनुभव होने लगता है | यही कारन है कि तेज भूख की स्थिति में पेट में अकसर गडगड़ाहट की आवाज होती है जिसे पेट में चूहे कूदना भी कहते हैं |
भूख के ग्लूकोज मत के अनुसार जब रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा में कमी आ जाती है तो क्षुधा केंद्र संवेदित हो जाता है और हमें भूख का अनुभव होने लगता है | भूख के ऊष्मा स्थैतिक सिद्धान्त के अनुसार श्रेरिक ताप में कमी के कारन भूख का अनुभव होता है | ज्वर में इसी कारण हमें भूख नहीं लगती क्योंकि इस दौरान शरीर का तापमान सामान्य से ज्यादा हो जाता है | जाड़े के दिनों म,एन कम तापमान के कारन हमें ज्यादा भूख लगती है जबकि गर्मी के दिनों में प्राय: भूख कम लगती है | कभी-कभी अत्यधिक भूख से प्रभावित आँतों व् पेट की क्रमाकुंचन क्रिया इतनी तीव्र होती है कि पेट में पीड़ा का अनुभव होने लगता है | इसे भूख की तीस कहते हैं | भोजन की पर्याप्त मात्रा ग्रेहण करने के पश्चात जब पेट भर जाता है तो मस्तिष्क में स्थित परितृप्ति केन्द्र के नियंत्रण से भूख की अनुभूति रुक जाती है |
क्या आपने कभी सोचा कि किसी को मीठा या किसी को नमकीन अधिक क्यो पसंद होता है ? सामने भोजन देखकर और मात्र उसकी सुगंध से ही मुँह में पानी आ जाता है, भूख और अधिक बढ़ जाती है | स्वादिष्ट भोजन हमें ज्यादा खाने को मजबूर कर देता है | नवजात शिशु यधपि स्वाद के मामले में अनभिज्ञ होता है, लेकिन वह भी सादे पानी की बजाय चीनी मिला पानी अधिक पीना पसंद करेगा, लेकिन नमकीन पानी मुँह से लगाते ही निकाल देगा | दरअसल मीठेपन की चाह और नमकीन से चिढ़ उसके रासायनिक बोध का परिणाम है | शिशु को आवश्यक उर्जा चीनी (शर्करा) से मिलती है, इसी कारण मिठास की और आकृष्ट होता है | शरीर में जल-लवण संतुलन के लिए नमक जरूरी है लेकिन वह उसे अपनी मां के दूध से मिल जाता है | इससे अधिक नमक की उसे जरूरत नहीं रहती | इस प्रकार भूख का रासायनिक बोध शरीर में ऐसे भोजन की इच्छा प्रबल कर देता है जो स्वास्थ्य के लिए जरूरी है | अगर कोई व्यक्ति लम्बे समय तक मीठी चीजों से दूर रहे तो जाहिर है शरीर में शर्करा का स्तर गिरेगा और उसे मीठा खाने की इच्छा होने लगेगी |
जब भूख लगती है तो शरीर किसी भोजन विशेष की नहीं बल्कि पोषक तत्वों की मांग करता है जो सेहत के लिए जरूरी होते हैं | इन पोषक तत्वों में कार्बोहाइड्रेटस और वसा, प्रोटीन्स, विटामिन, खनिज लवणव् जल प्रमुख हैं | शरीर में इन सभी की अलग-अलग भूमिका होती है | प्रोटीन जहाँ शरीरिक विकास व् मांसपेशियों की मरम्मत के लिए जरूरी है, वहीँ कार्बोहाइड्रेटस और वसा युक्त पदार्थ उर्जा उत्पन्न करने वाले पोषक तत्व हैं | विभिन्न प्रकार के खनिज लवण हड्डियों व् उत्तकों के निर्माण में सहायक हैं जबकि विटामिन हमारा रोगों से बचाव करते हैं | जल शरीर की कोशिकाओं का प्रमुख हिस्सा है जिसके माध्यम से शेष सभी पोषक तत्व शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँच पाते हैं |
किसी एक पोषक तत्व की कमी से हम बीमार पड़ सकते हैं | विशेष परिस्थिति में जब शरीर को किसी ख़ास पोषक तत्व की अधिक जरूरत होती है तो उस दौरान भूख और स्वाद इसी दिशा में निर्देशित हो जाते हैं | उस समय मस्तिष्क में स्थित क्षुधा केंद्र व्यक्ति को इस बात के लिए प्रेरित करता है कि वह भोजन विशेष के माध्यम से शरीर के आवश्यक व् कमजोर पक्ष को पूरा कर ले | सामान्य अवस्था में क्षुधा भूख का अनुभव तब कराता है जब पहले ग्रहण किए जाने वाले प्षक तत्व लगभग खर्च हो चुके होते हैं |
भूख की तीव्रता पाचक ग्रंथियों के स्त्राव पर निर्भर करती है | भोजन में विविधता, स्वाद, भोजन की महक, भोजन बनाने की विधि, भोजन करने के स्थान की स्वच्छता और सुरिची, ढंग से सजाकर प्रोसे गए भोजन के स्थान की स्वच्छता और सुरुचि, ढंग से सजाकर परोसे गए भोजन की साज-सज्जा इस बात को टी करते हैं कि हम कितना खाएंगे | भोजन से जुड़े हुए ये सारे पहलु पाचन ग्रंथियों को सक्रिय कर उचित चला है कि भूख को भोजन करने के स्थान के आसपास का रंग भी प्रभावित करता है | रंग चिकित्सा विशेषज्ञ एम्. जी. हिब्बन ने अपने परीक्षण के दौरान एक भोज में रंग-बिरंगे बल्ब इस प्रकार लगाए कि विभिन्न स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों का रंग कुछ और ही नजर आने लगा | परिणाम यह हुआ कि भोज में आमंत्रित मेहमानों की भूख ही मर गई और वे बहुत कम मात्रा में खा सके | एक दुसरे भोज में सामान्य खाद्य पदार्थ ही परोसे गए, लेकिन रंगीन प्रकाश की कुछ इस प्रकार व्यवस्था की गई कि थालियों, कटोरियों में सजी साधारण खाने की वस्तुएं भी स्वादिष्ट नजर आने लगीं | फलस्वरूप मेहमानों ने आशा से अधिक खाना खाया और खाने की हर चीज को सराहा |
अन्य बहुत सी बातों के अलावा वर्षो तक एक ही प्रकार का भोजन करते-करते हम उसके स्वाद के आदि हो जाते हैं | यदि परोसा गया भोजन इस स्वाद के अनुरूप नहीं होगा तो पाचक रसों का स्त्राव कम होगा और कम मात्रा में खा सकेंगे | वास्तव में भूख का विज्ञान अत्यंत जटिल है और इसके बारे में बहुत सी बातें ऐसी हैं जिनको जानना अभी शेष है | इस विषय में किए जा रहे अनुसंधान-कार्य निकट भविष्य में इस बार का पता लगा लेंगे कि एकसमान शरीरिक बनावट व् कार्य-क्षमता वाले दो व्यक्तियों को भूख और खाने की मात्रा में फर्क क्यों होता है |