बेरी–बेरी (Beri-beri)
Beri-Beri- Symptoms, Reasons, Causes
परिचय:-
बेरी-बेरी रोग के कारण रोगी व्यक्ति का स्नायु संस्थान कमजोर हो जाता है। इस रोग की कई किस्में होती हैं। एक सूजन वाला बेरी-बेरी रोग, दूसरा पुराना बेरी-बेरी रोग आदि। इस रोग के कारण हृदय की गति बन्द हो जाती है तथा पेशाब रुक-रुक कर आता है। पुराना बेरी-बेरी रोग हो जाने पर शरीर के अधिकांश भीतरी तंतुओं का नाश हो जाता है। शरीर में विटामिन `बी´ की कमी होने से बेरी-बेरी रोग व्यक्तियों को हो जाता है और इस रोग के कारण कई रोगी व्यक्ति तो अन्धे भी हो जाते हैं।
बेरी–बेरी रोग होने का कारण:-
यह रोग शरीर में विटामीन `बी´ की कमी के कारण होता है। विटामीन `बी´ की कमी के कारण रोगी का स्नायुसंस्थान कमजोर हो जाता है।
शरीर में विजातीय द्रव्यों के भर जाने के कारण व्यक्ति की आंख, स्नायुसंस्थान और हृदय बहुत अधिक प्रभावित होते हैं जिसके कारण व्यक्ति को यह रोग हो जाता है।
सड़े चावल, बिना चोकर का आटा तथा सरसों के तेल आदि में आर्जियोन मैक्सिक पान, हाइट्रोसियानिक एसिड, व्हाइट ऑयल या पेट्रोलियम मिले होने के कारण से भी यह रोग व्यक्ति को हो जाता है।
बेरी–बेरी रोग होने के लक्षण:-
इस रोग से पीड़ित रोगी को हमेशा कब्ज की समस्या रहती है।
रोगी व्यक्ति को भूख नहीं लगती है तथा उसकी पाचनशक्ति बिगड़ जाती है।
इस रोग से पीड़ित रोगी के शरीर में बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को कई प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं- रक्तहीनता (खून की कमी), सांस का फूलना, शोथ (सूजन), अतिसार, ज्वर, रक्तस्राव, यकृतदोष तथा हृदय रोग आदि।
कभी-कभी इस रोग से पीड़ित रोगी का पेशाब रुक-रुक कर आता है।
बेरी–बेरी रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार–
बेरी-बेरी रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए और इसके बाद इस रोग का उपचार करना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को कई प्रकार की चीजें- लाल गेहूं की रोटी, ढकी के चावल का मांड सहित लाल भात, लाल चिउड़ा पालक, पोई, फूलगोभी, आलू, गाजर, शलजम, सेम, टमाटर, ताजी साग-सब्जियां उबला हुआ अंकुरित चना, पपीता, अनन्नास, लेमू, खूब पका हुआ केला, सेब, सूखे मेवे आदि अधिक मात्रा में खाने चाहिए और फिर इस रोग का उपचार करना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को नमक बहुत ही कम खाना चाहिए यदि रोगी व्यक्ति नमक न खाए तो उसके इस रोग को ठीक होने में बहुत कम समय लगता है।
इस रोग का इलाज करने के लिए रोगी व्यक्ति को 2-3 दिनों तक ताजे फलों का रस प्रत्येक 3 घण्टे के अंतराल पर रोगी को पिलाना चाहिए तथा इसके बाद रोगी के पेट को साफ करने के लिए उसको एनिमा देना चाहिए। इसके बाद 7 दिनों तक सुबह के समय फलों का रस, दोपहर के समय रसदार फल और दूध तथा शाम के समय में सप्ताह में किसी एक दिन भाजी का सलाद तथा किसी एक दिन उबली हुई सब्जियों का सेवन कराना चाहिए।
रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में फल और दूध तथा दोपहर के समय में रोटी-सब्जी तथा रात के समय में सिर्फ फल या सब्जी देनी चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से रोगी व्यक्ति कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में लगभग 5 मिनट तक अपने पेट पर भीगी मिट्टी का पट्टी लगाकर सोना चाहिए तथा सप्ताह में 1 बार एप्सम साल्टबाथ (पानी में नमक मिलाकर उस पानी से स्नान करना) करना चाहिए। यदि रोगी को कब्ज की समस्या हो तो उन दिनों में रोगी को एनिमा देना चाहिए तथा उसके हृदय पर असर हो जाने पर रोगी को पूर्ण रूप से आराम करना चाहिए। इसके बाद प्रतिदिन आधे घण्टे तक रोगी के शरीर की मालिश करने से उसका बेरी-बेरी रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
जानकारी–
इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से बेरी-बेरी रोग का इलाज करने से रोगी व्यक्ति कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।