मिर्गी (Epilepsy)
Brain Hemorrhage”,”Dimag ki Nas Fatne ka Ilaj”,Symptoms, Reasons, Causes
परिचय:-
जब मिर्गी के रोग के दौरे पड़ते हैं तो रोगी के शरीर में खिंचाव होने लगता है तथा रोगी के हाथ-पैर अकड़ने लगते हैं और फिर रोगी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ता है। रोगी व्यक्ति के हाथ तथा पैर मुड़ जाते हैं, गर्दन टेढ़ी हो जाती है, आंखे फटी-फटी हो जाती हैं, पलकें स्थिर हो जाती हैं तथा उसके मुंह से झाग निकलने लगता है। मिर्गी का दौरा पड़ने पर कभी-कभी तो रोगी की जीभ भी बाहर निकल जाती है जिसके कारण रोगी के दांतों से उसकी जीभ के कटने का डर भी लगा रहता है। मिर्गी के दौरे के समय में रोगी का पेशाब और मल भी निकल जाता है। मिर्गी का दौरा कुछ समय के लिए पड़ता है और जब दौरा खत्म होता है तो उसके बाद रोगी को बहुत गहरी नींद आ जाती है।
मिर्गी रोग होने का कारण–
यह रोग कई प्रकार के गलत तरह के खान-पान के कारण होता है। जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है।
अत्यधिक नशीले पदार्थों जैसे तम्बाकू, शराब का सेवन या अन्य नशीली चीजों का सेवन करने के कारण मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है और व्यक्ति को मिर्गी का रोग हो जाता है।
पेट या आंतों में कीड़े हो जाने के कारण भी मिर्गी का रोग हो सकता है।
कब्ज की समस्या होने के कारण भी व्यक्ति को यह रोग हो सकता है।
स्त्रियों के मासिकधर्म सम्बन्धित रोगों के कारण भी मिर्गी का रोग हो सकता है।
मिर्गी का रोग कई प्रकार के अन्य रोग होने के कारण भी हो सकता है जैसे- स्नायु सम्बंधी रोग, ट्यूमर रोग, मानसिक तनाव, संक्रमक ज्वर आदि।
सिर में किसी प्रकार से तेज चोट लग जाने के कारण भी मिर्गी का रोग हो सकता है।
मिर्गी का रोग उन बच्चों को भी हो सकता है जिनके मां-बाप पहले इस रोग से पीड़ित हो।
मिर्गी रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार–
मिर्गी के रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को कम से कम 2 महीने तक फलों, सब्जियों और अंकुरित अन्न का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा रोगी को फलों एवं सब्जियों के रस का सेवन करके सप्ताह में एक बार उपवास रखना चाहिए।
मिर्गी के रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय गुनगुने पानी के साथ त्रिफला के चूर्ण का सेवन करना चाहिए। तथा फिर सोयाबीन को दूध के साथ खाना चाहिए इसके बाद कच्ची हरे पत्तेदार सब्जियां खाने चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति को अपने पेट को साफ करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए तथा इसके बाद अपने पेट तथा माथे पर मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए। रोगी को कटिस्नान करना चाहिए तथा इसके बाद उसे मेहनस्नान, ठंडे पानी से रीढ़ स्नान और जलनेति क्रिया करनी चाहिए।
मिर्गी रोग से पीड़ित रोगी का रोग ठीक करने के लिए सूर्यतप्त जल को दिन में कम से कम 6 बार पीना चाहिए और फिर माथे पर भीगी पट्टी लगानी चाहिए। जब पट्टी सूख जाए तो उस पट्टी को हटा लेना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी को सिर पर आसमानी रंग का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को गहरी नींद लेनी चाहिए।
जब रोगी व्यक्ति को मिर्गी रोग का दौरा पड़े तो दौरे के समय रोगी के मुंह में रूमाल लगा देना चाहिए ताकि उसकी जीभ न कटे। दौरे के समय में रोगी व्यक्ति के अंगूठे को नाखून को दबाना चाहिए ताकि रोगी व्यक्ति की बेहोशी दूर हो सके। फिर रोगी के चेहरे पर पानी की छींटे मारनी चाहिए इससे भी उसकी बेहोशी दूर हो जाती है। इसके बाद रोगी का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए ताकि मिर्गी का रोग ठीक हो सके।