दमे का इलाज : जिंदा मछली निगलना
अगर आप पुराने दमा से पीड़ित हैं तो एक जिंदा मछली निगलिए और बीमारी से निजात पाइए | दुबार फिर कभी एह बीमारी आप पर अपना असर नहीं डालेगी | हालाँकि एलोपैथक डाक्टरों, मेडिकल शोधर्थिओं और आयुर्वेद विशेषज्ञों का अभी इस पर विशवास नहीं है | इस चीक पर जहां विवाद है वहीँ इसके समर्थक भी हैं | लगभग डेढ़ सौ साल से हैदराबाद के एक पुराने मोहल्ले में हजारों लोग गाउद भाईंयों के घर इकट्ठे होते रहे हैं | यह सब मृगशिरा के दिन किया जाता है | मृगशिरा जूं महीने में पड़ता है | जून महीने में पाँच गाउद भाइयों के यहां लगभग सवा लाख लोग जुटे | इनमें विदेशी भी थे | गाउद भाइयों शिवराम, सोमालिंग्म, विश्वनाथ, हरिनाथ और उमा महेश्वर ने इस पद्धुती का प्रदर्शन किया | ये मेना इनके यहां इनके परदादा के जमाने से लगता आ रहा है |
पुराने दमा से निजं दिलाने वाली इस औषधि पर विवाद भी कम नहीं है | नई दिल्ली में नेशनल चेस्ट इंस्टीट्यूट के अस्थमा ब्रोमाइटिस फाउन्डेशन के अध्यक्ष प्रेम सोबती का कहना है की मुझे नहीं लगता कि इस औषधि का कोई वैज्ञानिक आधार भी है | दिल्ले के बल्लभ भाई पटेल चेस्ट के वरिष्ठ मेडिकल शोधार्थी का मानना है कि इसे पूरी तरह से नहीं नाकारा जा सकता | इसका कहना है कि बोसाइल अस्थमा के 80 रोगियों को फायदा ही पहुंचाती हैं | आयुर्वेद और सिद्ध की केन्द्रीय परिषद् के एच. आर. गोयल भी इस मछली उपचार को पूरी तरह नकारते हैं | उनका कहना है कि आयुर्वेद के किसी भी ग्रंथ में ऐसा उपचार नहीं बताया गया है | पर इन सब विरोधी दावों के बावजूद मछली उपचार के समर्थकों की सख्या भी काफी है | गुवाहाटी के ई. एन. टी. विशेषज्ञ ए. सी. दास को इस उपचार से गेदा पहुंचा है | उनहोंने यह उपचार लगभग चार साल लिया |
इस औषधि का पर्दर्शन निशुल्क किया जाता है | रोगी इस मुरेल मछली को बाजार से 20 से 50 रूपये तक में खरीदते हैं | मुरेल ताजा पानी में पाई जाने वाली मछली है | यह मछली आंध्र के तटीय इलाकों में मिलती है | मृगशिरा नक्षत्र के दिनों में यह उपलब्ध होती है | जो लोग जिंदा मछली नहीं निगल सकते हैं, उन लोगों को गाउद भाई करती उपचार करते हैं | इस उपचार में औषधि पेस्ट के रूप में होती है | इसे रोगी धुप में सुखाते हैं और दिन में छह गोलियां खानी पड़ती हैं | तीन विशेष दिनों में एह दवा ली जाती है | ये तीन दिन हैं अनुराधा, पुनवर्सु और पुष्प |