एक्यूपंचर क्या है ?
एलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली के इस युग में भी कई लोग अन्य प्राचीन चकित्सा प्रणालियों के बारे में जानने व् अपनाने के प्रति जागरूक हो रहे हैं, इनमें से एक है एक्यूपंचर चकित्सा प्रणाली | इस चिकित्सा पद्धति में शरीर के कुछ निशिचत बिन्दुओं पर सुइयां चुभोकर विभिन्न रोगों का इलाज किया जाता है | यह प्रणाली एक्युप्रेशर चिकित्सा प्रणाली से कुछ हद तक अलग है | इसमें विभिन्न केन्द्रों को दबाकर सुइयों को चुबोकर रोगों का इलाज किया जाता है | लेकिन दोनों प्रणालियों के मूल सिद्धान्त लगभग समान हैं |
प्राचीन एक्यूपंचर चिकित्सा प्रणाली की शुरुआत लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व चीमन में हुई थी | चीनी टेओइस्ट धर्म के अनुसार शरीर की समान्य व्यवस्था दो विपरीत अवस्थाओं पर निर्भर करती है जिन्हें येंग व् यिन कहते हैं | येंग अवस्था उजाले, सूर्य, दक्षिण, पुरुषत्व और सूखेपन से संबन्धित है जबकि यिन अवस्था अंधेरे, चन्द्रमा, उत्तर, स्त्रीत्व और गोलेपन से सम्बन्धित होती है | उन्जी मान्यता के अनुसार सभी रोग इन दोनों सिथ्तियां में असंतुलन के कारण होते हैं | अतः प्रणाली येंग व् यिन अवस्थाओं में संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है |
इस प्रणाली में किसी रोग का इलाज करने के लिए रोगी के शरीर के निश्चित बिन्दुओं पर पीतल या अन्य धातु की सुइयों को चुभोया जाता है | ये सुइयां 2 से 25 से.मी. लम्बाई की की होती हैं तथा इन्हें एक से लेकर लगभग आठ सौ बिन्दुओं पर पर चुभोया जाता है | ये बिंदु मानव शरीर पर एक निश्चित रेखा पर स्थित होते हैं | इन बिन्दुओं पर सुइयों को ज्यादा गहरा नहीं चुभोया जाता है और न ही सुई चुभाने में कोई विशेष दर्द महसूस होता है | रोग के समुचित इलाज के लिए कुछ मिनट से लेकर घंटों तक सुइयां चुभाई रख सकते हैं |
एक्यूपंचर चिकित्सा मलेरिया, कब्ज, अल्सर, अर्थराइटिस, गठिया, मानसिक रोगों आदि के लिए अत्यन्त लाभदायक साबित हुई हैं | आजकल इस प्रणाली में रोगी को बेहोश कर जटिल शल्य चिकित्सा भी की जाती है |
इस प्रणाली में मानव जाती को ही नहीं बल्कि पशुओं को भी विभिन्न जटिल रोगों से मुक्ति मिल रही है | मनुष्य की तरह पशुओं में भी इस प्रणाली से सुन्न करके आपरेशन किए जाते हैं |