“चुम्बक चिकित्सा” प्राकृतिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए अपनाये यह चिकित्सा

चुम्बक चिकित्सा

जैसा की सभी लोग इस बात को जानते हैं कि पृथ्वी भी स्वयं एक लौह चुम्बक है, और उसका अपना एक निश्चित चुम्बकीय क्षेत्र है, और ठीक इसी प्रकार से सूर्य, चन्द्रमा एवं अन्य आकाशीय पिंडों के भी अपने-अपने निश्चित चुम्बकीय क्षेत्र होते हैं।

chumbakइस प्रकार से इस विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों के बीच जन्म लेने वाला मानव शरीर भी चुम्बकीय बलों के द्वारा संचालित होने वाला और उन चुम्बकीय बलों से प्रभावित होने वाला होता है।

इस कारण नियंत्रित चुम्बकीय बलों के द्वारा शरीर और रक्त स्थित लौह कणों को आकर्षित करके मानव स्वास्थ्य का रक्षण या उसमे सुधार किये जाने सम्बंधित कई रहस्यमय और रोग निवारक गुण भी चुम्बक द्वारा प्राप्त किये जा सकते है।

चुम्बकीय चिकित्सा रोगों के उपचार का एक प्राकृतिक साधन है। इस पद्धति के द्वारा औषधि आदि पर कोई खर्च नहीं करना पड़ता और रोगी आधुनिक एलोपैथिक दवाओं की भयानक प्रतिक्रियाओं से बचा रहता है। पद्धति सर्वाधिक सुरक्षित और सरल है। इस पद्धति के द्वारा रोगी घर पर रह कर स्वयं ही अपना उपचार कर सकता है। यह पद्धति न तो किसी अन्य प्रकार के उपचार में बाधक है और न इससे कोई आदत ही पड़ती है।

चुम्बक का प्रयोग शारीरिक क्रियाओं को नियमित और नियन्त्रित रखता है। कुछ रोग तथा शारीरिक कारणों से जिन लोगों के लिए व्यायाम वर्जित होता है वे इस पद्धति द्वारा पूरा-पूरा लाभ उठा सकते हैं। चुम्बक द्वारा उपचार करने पर निरन्तर खर्च भी नहीं करना पड़ता। न औषधि आदि लेने का ही कोई बन्धन होता है। यह चिकित्सा इतनी कम खर्चीली है कि एक चुम्बकीय उपकरण ही अनेक रोगियों के भिन्न-भिन्न रोगों का उपचार करने में प्रयोग किया जा सकता है। जिन रोगों में अन्य चिकित्साएं विफल होती देखी गई हैं वहां चुम्बक को सन्तोषजनक काम करते पाया गया है।

चुम्बक की सहायता से पुराने और असाध्य रोग कम समय में ठीक किए जा सकते हैं। चुम्बक के सेवन में आयु की भी कोई बाधा नहीं है। एक नन्हें बच्चे से लेकर 70-80 वर्ष तक के वृद्ध चुम्बक का सेवन कर सकते हैं। रोगी ही नहीं जो लोग स्वस्थ हैं वे भी अपना स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए चुम्बक का सेवन कर सकते हैं।

इससे उन्हें जीवन भर हृदय रोग, रक्त, चाप, पक्षाघात, और मधुमेह जैसे भयानक रोगों के होने की सम्भावना नहीं रहती। आज के इस आधुनिक वैज्ञानिक के वैज्ञानिक भी इस रहस्यमय विद्युत चुम्बक की सत्ता को स्वीकार करते है और मानव शरीर में स्थित इस विधुत ऊर्जा को बायो-मैग्नेटिक्स के रूप में मान्यता देते है। ठोस एवं कृत्रिम चुम्बक विद्युत चुम्बक शक्ति का ही एक भाग है। ठोस चुम्बक और विद्युत चुम्बक दोनों में एक बुनियादी फर्क होता है। ठोस चुम्बक का मानव शरीर पर प्रयोग किये जाने पर उसके द्वारा प्रवाहित सुक्षम चुम्बकीय ऊर्जा की तरंगों की मानव को कोई भी अनुभूति नही होती है। परंतु वहीँ विद्युत चुंबक का मानव शरीर पर उपयोग किये जाने पर उसमे से निकलने वाली चुम्बकीय ऊर्जा की तरंगों को प्रत्यक्ष अनुभव होता है। जिस प्रकार से पृथ्वी के सपनी धुरी पर घूमने के कारण उसमे दो ध्रुव होते है, उत्तर एवं दक्षिण ठीक उसी प्रकार से सभी कृत्रिम एवं विद्युत चुम्बक के भी दो ध्रुव उत्तर और दक्षिण ध्रुव ( positive & Negative ) होते है।

पृथ्वी के भौगोलिक दक्षिण ध्रुव के पास चुम्बकीय उत्तरी ध्रुव और पृथ्वी के भौगोलिक उत्तर ध्रुव के पास चुम्बकीय दक्षिणी ध्रुव स्थित होते है। पृथ्वी रूपी इस विशाल चुम्बक की तरंगें सर्वदा दक्षिण से उत्तर दिशा की और प्रवाहित होती है। मानव शरीर के दाएं भाग में अवरोधक और मंद करने वाले तथा बाएं भाग में उत्तेजित करने वाले विद्युत चुम्बकीय बल होते हैं। स्वस्थ शरीर में इन दोनों बलों में आपस में आनुपातिक सन्तुलन होता है। जिसके कारण शरीर स्थित विविध अवयवों एवं कोषों के अपने अपने चुम्बकीय क्षेत्रों में आपस में सुसंगति और संवादिता होती है।

चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति हमारा शरीर अत्यन्त संवेदनशील है।

अतः चुम्बक अथवा विधुत चुम्बक इन चुम्बकीय बलों में उत्त्पन्न हो गयी किसी भी प्रकार की अस्त-व्यस्तता एवं संवादिता में पुनः सन्तुलन कायम करता है। शरीर के किसी अवयव या कोष समूह की विद्युत चुम्बकीय प्रक्रिया में बाधा पहुंचे या उसकी डोलन गति अथवा स्वाभाविक कम्पन्न गति में परिवर्तन हो तब रोग उत्त्पन्न होता है। शरीर केप्रत्येक कोष और अवयव की अपनी निश्चित कम्पन्न गति होती है। इस कम्पन्न गति में दिन के दौरान साधारण परिवर्तन तो होते ही रहते है। जब इस कम्पन्न गति में भरी परिवर्तन होते है तब उस अवयव की कार्य क्षमता घटती है और रोग का जन्म होता है।

संतुलन ही स्वास्थ्य का मूलाधार है:-

रोगों की रोकथाम के लिये आवश्यक है कि शरीर में जमें अनावश्यक तत्त्वों को बाहर निकाला जावे एवं शरीर के सभी अंग उपांगों को संतुलित रख शारीरिक क्रियाओं को नियंत्रित रखा जाये। जो अधिक सक्रिय हैं, उन्हें शान्त किया जावे तथा जो असक्रिय हैं, उन्हें सक्रिय किया जावे। एक या अधिक लौह चुम्बक शरीर के जिस भाग के सम्पर्क में रखे जाते है, उस भाग के कोष और अवयव अपनी प्रकृतिक डोलन गति पुनः प्राप्त करते है।

चुम्बक का उपचार इन सभी कार्यो में प्रभावशाली होता है। शरीर में चुम्बकीय ऊर्जा का असंतुलन एवं कमी अनेक रोगों का मुख्य कारण होती है। यदि इस असंतुलन को दूर कर अन्य माध्यम से पुनः चुम्बकीय ऊर्जा उपलब्ध करा दी जावे तो रोग दूर हो सकते हैं। चुम्बकीय चिकित्सा का यहीं सिद्धान्त है। 

पृथ्वी के चुम्बक का हमारे जीवन पर प्रभाव-जब तक पृथ्वी के चुम्बक का हमारी चुम्बकीय ऊर्जा पर संतुलन और नियंत्रण रहता है तब तक हम प्रायः स्वस्थ रहते हैं। जितने-जितने हम प्रकृति के समीप खुले वातावरण में रहते हैं, हमारे स्वास्थ्य में निश्चित रूप से सुधार होता है। पृथ्वी और हमारे मध्य जितने अधिक लोह उपकरण होते हैं, उतना ही कम पृथ्वी के चुम्बक से हमारा सम्पर्क रहता है।

इसी कारण  खुले वातावरण में विचरण करने वाले,  गाँवों में रहने वाले,  कुएँ का पानी पीने वाले, पैदल चलने वाले,  अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ रहते हैं। जितना-जितना पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से संपर्क बढ़ता है, उतनी-उतनी शरीर की सारी क्रियायें संतुलित एवं नियन्त्रित होती है, उतने-उतने हम रोग मुक्त होते जाते हैं।चुम्बक का शरीर पर प्रभाव चुम्बक का थोड़ा या ज्यादा प्रभाव प्रायः सभी पदार्थो पर पड़ता है। चुम्बक की विशेषता है कि वह किसी भी अवरोधक को पार कर अपना प्रभाव छोड़ने की क्षमता रखता है। जिस प्रकार बेटरी चार्ज करने के पश्चात् पुनः उपयोगी बन जाती है,

उसी प्रकार शारीरिक चुम्बकीय प्रभाव को चुम्बकों द्वारा संतुलित एवं नियन्त्रित किया जा सकता है- चुम्बक का प्रभाव हड्डी जैसे कठोरतम भाग को पार कर सकता है, लौह चुम्बक से निकलने वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगें अत्यन्त गहराई तक प्रवेश करती हैं और उस भाग के सके एक कोष तक पहुँच जाती है परिणाम स्वरूप कोषों के अर्धप्रवाही द्रव्य ( Protoplasm ) का ध्रुवीकरण ( Polarisation ) होता है। और इस ध्रुवीकरण से पदार्थ की शक्ति बढ़ती है।

अतः हड्डी सम्बन्धी दर्द निवारण में चुम्बकीय चिकित्सा रामबाण के तुल्य सिद्ध होती है। चुम्बक चिकित्सा शरीर से पीड़ा दूर करने में बहुत प्रभावशाली होती है। लौह चुम्बक के उचित उपयोग से नए स्वस्थ कोषों के निर्माण को वेग मिलता है घाव जल्द भर जाता है और टूटी हुई हड्डियां जल्द जुड़ जाती है।

रक्त संचार ठीक करता है एवं रोग ग्रस्त अंग पर आवश्यकतानुसार चुम्बक का स्पर्श करने से, शरीर के सम्बंधित भाग में स्थित अनिष्ट जंतुओं और कीटाणुओं की प्रवृति मन्द पद जाती है। अंत में इस प्रक्रिया के कारण उनका नाश हो जाता है। प्रवाहियों पर लौह चुम्बक का एक निश्चित असर होता है। रक्त भी एक प्रवाही है। रक्त में स्थित लाल रक्त कण ( रक्त में स्थित हीमोग्लोबिन के लौह के कारण ) भी चुम्बकों से प्रभावित होते है। इस प्रकार रक्त का भी ध्रुवीकरण होता है। जब रक्त में विद्युत चुम्बकीय तरंगें प्रविष्ट होती है तब उसमें आवर्त विद्युत प्रवाह ( Eddy Currents ) उत्त्पन्न होते है, जिससे रक्त का तापमान जरा सा बढ़ जाता है। रक्त में आयनों ( Ions ) की संख्या बढ़ती है। अधिक आयनों वाला ध्रुवीकरण को प्राप्त और अन्य सानुकूल परिवर्तनों वाला रक्त जब शरीर में परिभ्रमण करता है तब समग्र शरीर पर उसका अच्छा असर होता है।

पाचन के अंत में स्नायुओं में उत्त्पन्न होने वाले अनावश्यक पदार्थों ( Metabolic wastes ) के घुल जाने से स्नायुओं की स्थिति में सुधार होता है, इससे तनाव, थकान और पीड़ा का निवारण होता है। रक्तवह्नियों के भीतर जमा कोलेस्ट्रॉल, कैल्शियम आदि की तहँ घुल जाती है ओर रक्त के साथ परिभ्रमण योग्य रूप में नियंत्रित होने से ह्रदय की कार्य क्षमता बढ़ती है। रक्त के तापमान में होने वाली वृद्धि के कारण अंतःस्रावी ग्रंथियों ( Endocrine Glands ) के स्राव का नियमन होता है। शरीर की सभी

चुम्बकीय ऊर्जा उस क्षेत्र में संतुलित की जा सकती है। स्थायी रोगों, दर्द आदि में इससे काफी राहत मिलती हैं। चुम्बकीय उपचार करते समय इस बात का ध्यान रहे कि, रोगी को सिर में भारीपन न लगें, चक्कर आदि न आवें। ऐसी स्थिति में तुरन्त चुम्बक हटाकर धरती पर नंगे पैर घूमना चाहिये अथवा एल्यूमिनियम या जस्ते पर खड़े रहने अथवा स्पर्श करने से शरीर में चुम्बक चिकित्सा द्वारा किया गया अतिरिक्त चुम्बकीय प्रभाव कम हो जाता है। चुम्बकीय चिकित्सा में उस ध्रुव को दक्षिणी ध्रुव कहते हैं। दूसरा किनारा उससे विपरीत यानी उत्तरी ध्रुव होता है। दो चुम्बकों के विपरीत ध्रुवों में आकर्षण होता है तथा समान ध्रुव एक दूसरे को दूर फेंकते हैं। दक्षिणी ध्रुव का प्रभाव  गर्मी बढ़ाना,  फैलाना,  उत्तेजित करना,  सक्रियता बढ़ाना  होता है, जबकि उत्तरी ध्रुव का प्रभाव इसके विपरीत शरीर में गर्मी कम करना,  अंग सिकोड़ना,  शांत करना, सक्रियता को नियन्त्रित एवं सन्तुलित करना आदि होता है।

चुम्बकीय उपचार की विधियाँ:-

हमारे शरीर के चारों तरफ चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र होता है। जिसे आभा मण्डल भी कहते हैं। प्रायः दाहिने हाथ से हम अधिक कार्य करते हैं।  अतः दाहिने भाग में दक्षिणी ध्रुव के गुण वाली ऊर्जा तथा बांयें भाग में उत्तरी ध्रुव के गुण वाली ऊर्जा का प्रायः अधिक प्रभाव होता है। अतः चुम्बकीय ऊर्जा के संतुलन होने हेतु बायीं हथेली पर दक्षिणी ध्रुव एवं दाहिनी हथेली पर चुम्बक के उत्तरी ध्रुव का स्पर्श करने से बहुत लाभ होता है। शरीर के चुम्बक का, उपचार वाले उपकरण चुम्बक से आकर्षण होने लगता है और शरीर में चुम्बकीय ऊर्जा का संतुलन होने लगता है।परन्तु यह सिद्धान्त सदैव सभी परिस्थितियों में विशेषकर रोगावस्था में लागू हो, आवश्यक नहीं..? अतः स्थानीय रोगों में चुम्बकीय गुणों की आवश्यकतानुसार चुम्बकों का स्पर्श भी करना पड़ सकता है। 

फिर भी चुम्बकीय उपचार की निम्न तीन मुख्य विधियाँ मुख्य होती है- रोगग्रस्त अंग पर आवश्यकतानुसार चुम्बक का स्पर्श करने से, चुम्बकीय ऊर्जा उस क्षेत्र में संतुलित की जा सकती है।

स्थायी रोगों, दर्द आदि में इससे काफी राहत मिलती हैं- एक्युप्रेशर की रिफलेक्सोलोजी के सिद्धान्त अनुसार शरीर की सभी नाडि़यों के अंतिम सिरे दोनों हथेली एवं दोनों पगथली के आसपास होते हैं। इन क्षेत्रों को चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र में रखने से वहां पर जमें विजातीय पदार्थ दूर हो जाते हैं तथा रक्त एवं प्राण ऊर्जा का शरीर में प्रवाह संतुलित होने लगता है, जिससे रोग दूर हो जाते हैं।

इस विधि के अनुसार दोनों हथेली एवं दोनों पगथली के नीचे कुछ समय के लिये चुम्बक को स्पर्श कराया जाता है। दाहिनी हथेली एवं पगथली के नीचे सक्रियता को संतुलित करने वाला उत्तरी ध्रुव तथा बांयी पगथली एवं हथेली के नीचे शरीर में सक्रियता बढ़ाने वाला दक्षिणी ध्रुव लगाना चाहिये-

चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र में किसी पदार्थ अथवा द्रव्य, तरल पदार्थों को रखने से उसमें चुम्बकीय गुण प्रकट होने लगते हैं जैसे-  जल,  दूध, तेल आदि  तरल पदार्थो में चुम्बकीय ऊर्जा का प्रभाव बढ़ाकर उपयोग करने से काफी लाभ पहुंचता है। चुम्बकों द्वारा प्रभावित जल में अनेक परिवर्तन होते है, जल का पृष्ठ तनाव ( Surface tension ), दुर्वाहिता ( Viscosity ), घनता ( Density ), वजन ( weight ), विद्युत वहन शक्ति आदि भौतिक ( Physical ), परिणामों में परिवर्तन होता है। कुछ रासायनिक ( Chemical ) परिणामों में भी अनुकूल परिवर्तन होते है। जैसे:- पानी में स्फटिकीकरण के केंद्र बढ़ते है। आयनों की संख्या बढ़ती है हाइड्रोजन अणु अधिक सक्रिय बनते हैं। जल का पी एच बढ़ता है। जल में घुले हुए नाइट्रोजन की मात्रा घटती है। चुम्बकीय क्षेत्र प्रवाही के स्फटीकीकर्ण केंद्रों में वृद्धि करता है। चुम्बकीय जल का उपयोग चुम्बक के प्रभाव को  पानी,  दूध,  तेल एवं  अन्य द्रवों में डाला जा सकता है।

शक्तिशाली चुम्बकों पर ऐसे द्रव रखने से थोड़े समय में ही उनमें चुम्बकीय गुण आने लगते हैं।  जितनी देर उसको चुम्बकीय प्रभाव में रखा जाता है, चुम्बक हटाने के पश्चात् लगभग उतने लम्बे समय तक उसमें चुम्बकीय प्रभाव रहता है। प्रारम्भ के 10-15 मिनटों में 60 से 70 प्रतिशत चुम्बकीय प्रभाव आ जाता है। परन्तु पूर्ण प्रभावित करने के लिये द्रवों को कम से कम शक्तिशाली चुम्बकों के 6 से 8 घंटे तक प्रभाव में रखना पड़ता है। चुम्बक को हटाने के पश्चात् धीरे-धीरे द्रव में चुम्बकीय प्रभाव क्षीण होता जाता है।चुम्बकीय जल बनाने के लिये पानी को  स्वच्छ कांच की गिलास अथवा बोतलों में भर, लकड़ी के पट्टे पर शक्तिशाली चुम्बकों के ऊपर रख दिया जाता है। 8 से 10 घंटे चुम्बकीय क्षेत्र में रहने से उस पानी में चुम्बकीय गुण आ जाते हैं। उत्तरी ध्रुव के सम्पर्क वाला उत्तरी ध्रुव का पानी तथा दक्षिणी ध्रुव के सम्पर्क वाला दक्षिणी ध्रुव के गुणों वाला पानी बन जाता है। दोनों के संपर्क में रखने से जो पानी बनता है उसमें दोनों ध्रुवों के गुण आ जाते है।

तांबे के बर्तन में दक्षिणी ध्रुव तथा  चांदी के बर्तन में उत्तरी ध्रुव द्वारा ऊर्जा प्राप्त पानी अधिक प्रभावशाली एवं गुणकारी होता है- चुम्बकीय जल की मात्रा का सेवन रोग एवं रोगी की स्थिति के अनुसार किया जाता है। स्वस्थ व्यक्ति भी यदि चुम्बकीय जल का नियमित सेवन करें तो, शरीर की रोग निरोधक क्षमता बढ़ जाती है। रोग की अवस्थानुसार चुम्बकीय जल का प्रयोग प्रतिदिन 2-3 बार किया जा सकता है। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि चुम्बकीय प्रभाव से पानी दवाई बन जाता है- उसको सादे पानी की तरह आवश्यकता से अधिक मात्रा में में नहीं पीना चाहिये। चुम्बक के अन्य उपचारों के साथ आवश्यकतानुसार चुम्बकीय पानी पीने से उपचार की प्रभावशालीता बढ़ जाती है। अतः चुम्बकीय उपचार से आधा घंटे पूर्व शरीर की आवश्यकतानुसार चुम्बकीय पानी अवश्य पीना चाहिये। चुम्बकीय जल की भांति यदि दूध को भी चंद मिनट तक चुम्बकीय प्रभाव वाले क्षेत्र में रखा जाये तो, वह शक्तिवर्द्धक बन जाता है। इसी प्रकार किसी भी तेल को 45 से 60 दिन तक उच्च क्षमता वाले चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र में लगातार रखने से उसकी ताकत बढ़ जाती है। ऐसा तेल बालों में इस्तेमाल करने से बालों सम्बन्धी रोग जैसे  गंजापन, समय से पूर्व सफेद होना ठीक होते हैं- चुम्बकीय तेल की मालिश भी साधारण तेल से ज्यादा प्रभावकारी होती है। जितने लम्बे समय तक तेल को चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र में रखा जाता है, उतनी लम्बी अवधि तक उसमें चुम्बकीय गुण रहते हैं। थोड़े-थोड़े समय पश्चात् पुनः थोड़े समय के लिये चुम्बकीय क्षेत्र में ऐसा तेल रखने से उसकी शक्ति पुनः बढ़ायी जा सकती है।

जोड़ों के दर्द में ऐसे तेल की मालिश अत्यधिक लाभप्रद होती है- दक्षिणी ध्रुव से प्रभावित दूध विकसित होते हुए बच्चों के लिये बहुत लाभप्रद होता है। दोनों ध्रुवों से प्रभावित दूध शक्तिवर्धक होता है- दोनों ध्रुवों से प्रभावित तेल बालों की सभी विसंगतियां दूर करता है। सिर पर लगाने अथवा मानसिक रोगों के लिये चुम्बकीय ऊर्जा से ऊर्जित नारियल का तेल तथा जोड़ों के दर्द हेतु सूर्यमुखी,   सरसों अथवा तिल्ली का  चुम्बकीय तेल अधिक गुणकारी होता है- लेख को आदि से अंत तक एक बार ही नही अनेकों बार ध्यान से पढ़ें। इससे आपको जहाँ चुम्बक चिकित्सा पद्धति की आधारभूत जानकारी अधिक से अधिक स्पष्ट रूप से न केवल मालूम होगी बल्कि याद भी हो जायेगी और साथ ही साथ आपको अपनी बहुत सी स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं का भी हल स्वतः ही प्राप्त हो जायेगा। चुम्बक अथवा विद्युत चुम्बक चिकित्सा का प्रयोग करने की मन में इच्छा हो तो सर्वप्रथम तो आपको अपने नगर के किसी प्रतिष्ठित चुम्बक चिकित्सक से सम्पर्क करके उन्ही की दिशा निर्देश में यह चुम्बक चिकित्सा करनी चाहिए।

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

maharaja188 garuda4d maharaja188 senior4d maharaja188 maharaja188 maharaja188 senior4d garuda4d maharaja188 maharaja188 maharaja188 maharaja188 maharaja188 maharaja188 senior4d garuda4d maharaja188 garuda4d senior4d maharaja188 mbah sukro maharaja188 maharaja188 slot gacor senior4d maharaja188 senior4d maharaja188 maharaja188 maharaja188 senior4d maharaja188 maharaja188 maharaja188 maharaja188 senior4d kingbokep scatter hitam maharaja188 senior4d maharaja188 slot777 kingbokep https://pusakawin.free.site.pro/ maharaja188 maharaja188 https://heylink.me/pusakawin./ https://desty.page/pusakawin https://link.space/@pusakawin pusakaiwn kingbokep ozototo https://mez.ink/pusakawin https://gmssssarangpur.com/classes/ https://saturninnovation.com/scss/ slot resmi scatter hitam https://pusakaemas.b-cdn.net https://pusakawin.netlify.app/ https://pusakawin.onrender.com/ https://pusakawin.github.io pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin mbah sukro pusakawin kingbokep pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin maharaja188 pusakawin maharaja188 pusakawin pusakawin pusakawin pusaka win pornhub maharaja188 pusakawin pusakawin pusakawin slot777 Pondok Pesantren Al Ishlah Bondowoso pay4d pusakawin slot thailand pusakawin maharaja188 maharaja188 slot maharaja188 maharaja188 maharaja188 slot gacor maharaja188 slot777 maharaja188 pusakawin maharaja188 bangsawin88 slot777 maharaja188 bandar bola bangsawin88 dausbet bangsawin88 bangsawin88 maharaja188 bangsawin88 jamur4d bangsawin88 bandar bola maharaja188 pusakawin slot qris pusakawin bangsawin88 bangsawin88 bangsawin88 slot qris bangsawin88 slot gacor kingbokep slot gacor 777 slot777 slot mpo bangsawin88 cariwd88 cariwd88 samson88 samson88 samson88 samson88 mbahsukro mbahsukro pusakawin slot mpo kingbokep jenongplay mafiatoto samson88 cariwd88 dasubet dasubet