एपिनिडक्स का ऑपरेशन
हमारे शरीर में कुछ अवशिष्ट अंग होते हैं | मानव विकास की श्रंखला में कभी महत्वपूर्ण रहे अंग, वर्तमान मावन मे निरुपयोगी है किन्तु इन अंगों के बचे रहने से कभी-कभी समस्या और होती है | ऐसा ही एक अंग आंत का एक टुकड़ा है – इसे एपिनिडक्स कहते हैं | निरुपयोगी एपिनिडक्स भी कभी-कभी बेहद दुरुपयोगी सिद्ध होता है | यूँ तो आंत के यह टुकड़ा उंगली भर छोटा होता है किंतु जब यह संक्रमित होता है तो बड़ा खोटा हो जाता है | संक्रमित एपिनिडक्स अर्थात मेडिकल भाषा में एपिनिडसाईटिस, मरीज के लिए ही नहीं डॉक्टरों के लिए भी एक समस्या है, क्योंकि इसका निदान आसान नहीं है | चूँकि पेट में कई अंग स्थित होते हैं और इन अंगों की अनेक बिमारियों में पेट दर्द, बुखार उलटी आदि के समान लक्षण होते हैं | भौतिक परीक्षण और पूर्व इतिहास भी पेट के अनके अंग के रोगों में मिलते-जुलते रहते हैं | अतएव सुनिश्चित एवं अन्तिम निदान की समस्या बनी रहती है |
आंत का यह अवशिष्ट एंड प्राय: भारत में पश्चिमी देशों की अपेक्षा कम ही दिक्कत करता है | इस पर भी वास्तविक रोगियों की संख्या से दुसरे अंग की है और तोहमत मढ़ी जाती है अवशिष्ट आंत के टुकड़े पर | वस्तुत: एक तो यह अंग निरुपयोगी है , दूसरा इसे काटकर फेंकना भी सरल शल्यक्रिया है | अत: शल्य चिकित्सक प्राय: इसके ओपरेशन में अति उल्साह प्रदर्शित करते हैं |
आंत के लिए अवशिष्ट टुकड़े का एक सिरे खुला है तो दूसरा बिल्कुल बंद | यही बझ है की भोजन का कोई कण इसकी छोटी नली में प्रवेश कर जाये तो इसके आगे जाने का रास्ता ही बंद है | परिणाममत: संक्रमित हो जाता है | ऐसा कोई परीक्षण अभी भी विकसित नहीं हो सका है जो संक्रमित एपिनिडक्स का सुनिश्चित निदान कर सके |
एपिनिडक्स शोथ के कारण
दीर्घकालीन कब्ज, खाद तन्तु हीन आहार, पेट के परजीवी, आंत का क्षयरोग, अबुर्द इत्यादि से एपिनिडक्स की नली में अवरोध हो जाता है | यह अवरोध कुछ दिनों तक रहे तो संक्रमण होकर इसके फटने की बारी आ सकती है | एपिनिडक्स का फटना एक गंभीर एवं आपात स्थिति है | पाश्चात्य विकसित देशों में यह रोग सामान्य है जबकि भारत में अपेक्षाकृत कम होता है | भारत में धनी और पाश्चात्य शैली से दिनचर्या से जोड़ा गया है | आहार में अधिक वसा, मांस, कम खाद तन्तु कम साग-भाजी और कम शरीरिक श्रम करने के कारण कब्ज ज्यादा होता है जो अन्तत: एपिनिडक्स को दिक्कत कर सकता है |
उग्र एपिनिडक्स सोथ – हालाकि यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है किन्तु बच्चे किशोर व् युवा इसकी चपेट में ज्यादा आटे हैं | नाभि के आसपास तीव्र दर्द, जी मिचलाना, उलटी, भूख कम लगना आदि लक्षण होते हैं | दर्द, दायें पेट में निचली और भी हो सकता है | छूने पर दर्द तेज हो जाता है | दांया पैर आगे बढ़ाने तक से दर्द बढ़ सकता है | नब्ज तेज, बुखार तेज होता है | यदि उचित उपचार न मिले तो दायीं और पेट में गोला बन जाता है अथवा सडान होकर एपिनिडक्स फट सकता है | पेट का गोला तो तीन-चार सप्ताह में सामान्य हो जाता है किंतु एपिनिडक्स फटने से पेट की झिल्ली संक्रमित हो जाती है | यह आपात स्थिति है |
चिरकालिक एपिनिडक्स सोथ – यह स्थिति पेट के अनके रोगों से भ्रमित करती है | हल्का-हल्का पेट दर्द जो आहार से अस्म्बन्धित होता है | जी मिचलाना, कुपच, पेट फूलना, दायें पेट के निचले हिस्से में छूने से दर्द इत्यादि |
निदान – उम्र सोथ के निदान के लिए अंत दर्द, बड़ी तीव्र संक्रमण, गुर्दे पथरी के दर्द, तीव्र आमाशय सोथ, महिला प्रजननांग रोग, आंत के क्षय रोग, अबुर्द, अमीबा की गांठ इत्यादि रोगों से पृथक करना होता है | भौतिक परीक्षण, पूर्व इतिहास, मल-मूत्र रक्त परीक्षण, एक्सरे तथा जरूरी होने पर विशेष जांच-इतिहास, मल-मूत्र रक्त परीक्षण, एक्सरे तथा जरूरी होने पर विशेष जाँच-परीक्षण सहायक होते हैं | यहाँ तक की सिर्फ निदान के लिए अमल-अधिक्य, पित्त की थैली, गुर्दे एवं चिरकालिक बड़ी आंत के रोगों से इसे पृथक करना होता है |
उपचार एवं शल्यक्रिया – पहली बार हुए दर्द में प्रतिजीवी औषधिया, दर्दनिवारक, द्रव चिकित्सा पद्धति से इलाज करते हैं | निदान निश्चित न होने पर और किशोरी रोगिणी की हालत में देखो और प्रतीक्षा करो’ की नीति अपनाते हैं | यदि दर्द के दौरे बार-बार आते हों, दवाओं से स्वास्थ्य-लाभ न हो रहा हो, पेट की झिल्ली संक्रमित होने का खतरा हो, मरीज की हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही हो और सुनिशिचत निदान निर्णय लिया जा चुका हो तो ऑपरेशन कराना ही हितकारी है |