मदिरापान
वर्तमान भारतीय सन्दर्भों में ‘मदिरापान’ एक चिंतनीय विषय है | अविधिपुर्वक तथा अनियंत्रित रूप से मदिरा-पान करने वाले लोग आज प्रचुरता में उपलब्ध हैं |
मदात्यय के लक्षण
इस रोग से पीड़ितों को अनिद्रा, प्यास, ज्वर, शरीरिक जलन. पसीना अधिक आना, मूर्च्छा, अतिसार, सर में चक्कर, वमन, भोजन के प्रति अरुचि, जी मिचलाना, तन्द्रा, गीले कपड़े को शरीर पर लपेटे हुए जैसा अनुभव होना, भारीपन इत्यादि उपद्रवों से जूझना पड़ता है |
आयुर्वेदीय दृष्टिकोण के अनुसार शरीर की समस्त धातुओं का सर स्वरूप ‘ओज’ दस गुणों से परिपूर्ण होता है | ये गुण हैं – गुरु, शीत, मृदु शलक्ष्ण, बहल, मधुर, स्थिर, प्रसन्न, पिचिछल, स्निगध | विचारणीय तथ्य यह है कि ‘मध्’ में भी दस गुणों से पूर्णत: विपरीत होने के कारण, मदिरापान करने वाला व्यकित ओजहीन एवं दुर्बल होकर अनेक व्याधियों से ग्रस्त हो जाता है |
अर्वाचीन चिकित्सा विज्ञान ‘मदात्यय’ को तीव्र (एक्यूट) एवं जीर्ण (क्रोनिक) दो भागों में विभक्त करता है | आयुर्वेदाचार्य चरक ने मध की प्रशसित उल्लेख किया है कि स्वभाव से ‘मध’ ‘अन्न’ के साधर्म्य वाले अमृतवत, लाभप्रद तथा युक्तिपूर्ण किया गया मदिरापान रोगोत्पादक होता है | जीर्ण मदात्यय के रोगियों की स्मृति दुर्बल अथवा स्मृतींनाश, भ्रम, प्रलाप, शरीर कम्प, लडखडाहट, इंद्रियों द्वारा यथार्थ ज्ञान में अवरोध इत्यादि मानसिक विकार उत्पन्न होते हैं |
मदात्यय का घरेलू उपचार
मनुक्का, आंवला, छुहारा और फालसा-इनमें से एक-दो या अधिक द्वयों के रस से बना शरबत रोगी को दिन में तीन-चार बार 200-200 मिलीमीटर की मात्र में पिलाते रहें |
कमरख, खजूर, अंगूर, खट्टा अनार का ताजा रस, मिश्री मिलाकर सेवनीय है | इससे शीघ्र ही शराब का नशा उतरता है तथा अन्यान्य उपद्रव भी शांत होते हैं |
चरक संहिता में मदात्यय रोग में तर्पण पानक, मंथ, राग, पाडव नामक औषध योगों का प्रयोग बतलाया है | विशद प्रयोगों के लिए आयुर्वेद विशेषज्ञ से परामर्श लिया जाना उपेक्षित है | जलजीरा, नींबू की शिकंजी, कांजी, इमली का पानी भी ‘मदात्यय’ के लक्षणों को शान्त करता है |
आम एवं आंवले की चटनी भी मदात्यय रोगियों को भोजन के साथ दिए जाने पर अमृतवत लाभ देती है | चटनी में धनिया, सौंचर, नमक, जीरा, नींबू का रस, काली मिर्च सैंधा नमक मिलाने से यह विशेष गुणकारी बन जाती है |
मदात्यय-पीड़ितों के अग्निमाध, भूख न लग्न इत्यादि पाचन-संसथान
के विकारों के निवारण के लिए ‘अष्टांग लवण’ उपयोगी है |
अष्टांग-लवण निर्माण विधि
सौंचर नमक एक तोला, जीरा एक तोला, इमली एक तोला लें | इसमें दालचीनी, छोटी इलायची के दाने तथा काली मिर्च आधा-आधा तोले की मात्रा में तथा चीनी एक टोला मिलाकर बारीक पीसकर चूर्ण तैयार करें | यह चूर्ण प्राय: सांय 3 से 5 ग्राम की मात्रा में शीतल जल से सेवनीय है | यह जठराग्नि को प्रबल बनाता है |
‘मदात्यय’ के रोगियों को शराब का चूर्ण त्याग करने के लिए प्रेरित किया जाना आवश्यक है | शराब के स्थान पर उन्हें औषधीय आसव, अरिष्ठ दिए जा सकते हैं | रोगी की इच्छा-शक्ति को जागृत करना भी अनिवार्य है | प्रात: सांय 20-20 मिलीमीटर प्याज का जाता रस देने से ‘शराब की तलब’ में क्रमश: कमी आती है | नियमित प्रात:काल उबले हुए सेब (Apple) भी खिलाए जा सकते हैं | अजवायन का अर्क दिन में तीन-चार बार 10-10 मिलीलीटर पिलाने से भी शराब पीने की इच्छा शांत होती है |
अन्य औषधियां
मदात्यय पीड़ितों को उचिं वैध्कीय परामर्श व् निरिक्षण में योगेन्द्ररस, महातिक्त घृत, कल्याण घृत, शतावरी घृत, ब्राह्मी वटी, स्मृति सागर रस, प्रवालि पिष्टी, उन्माद गजकेशरी रस, शरबत शंखपुष्पी, एलादिवटी, अश्वगंधारिष्ट, वृहदातचिंतामणि रस, रसराज रस इत्यादि शास्त्रोरक आयुर्वेदीय औषध योगों को धैर्यपुर्वक सेवन करने से आशातीत लाभ मिलता है |