वात ज्वर (Vatta jawar)
Vatta Fever– Symptoms, Reasons, Causes
परिचय:-
वात ज्वर के और भी कई नाम हैं जैसे- देह वात, एक्यूट ऑरटीकलुअर रेहुमेटिसम, एक्यूट रेहुमेटिसम, रेहुमेटिसम फीवर तथा एक्यूट इंफलामेटोरी आदि।
वात ज्वर के लक्षण :-
जब किसी व्यक्ति को वात ज्वर हो जाता है तो इस अवस्था में उसका बुखार 104 डिग्री सेल्सियस से 105 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है और कभी-कभी तो बुखार इससे भी तेज हो जाता है। इस रोग से पीड़ित रोगी के शरीर के सभी भागों तथा जोड़ों में सूजन और दर्द होने लगता है। कभी-कभी इस रोग के कारण जोड़ों पर बारी-बारी से सूजन तथा दर्द होता है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को अपने शरीर के अंगों को हिलाने-डुलाने में परेशानी होने लगती है और दर्द में तेजी आ जाती है तथा रोगी को कब्ज की समस्या भी होने लगती है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को सिर में दर्द, पेशाब लाल रंग का होना, सांस की चाल में तेजी आना, अधिक प्यास लगना आदि समस्याएं हो जाती हैं। रोगी व्यक्ति को रात के समय में रोग में और तेजी आ जाती है जिसके कारण उसे बहुत अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
वात ज्वर होने के कारण :-
इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण गलत तरीके का खान-पान है जिसके कारण शरीर में दूषित द्रव्य जमा हो जाता है और स्नायु में सूजन हो जाती है जिसके कारण रोगी व्यक्ति को वात ज्वर हो जाता है।
शरीर में खून में अधिक अम्लता हो जाने के कारण भी स्नायु में सूजन हो जाती है और जब यह रोग अधिक गम्भीर हो जाता है तो इसके कारण रोगी व्यक्ति को वात ज्वर हो जाता है।
असंतुलित भोजन के कारण शरीर में `विटामिन´ तथा लवणों की कमी हो जाती है जिसके कारण स्नायु में सूजन हो जाती है इस रोग के बढ़ने की स्थिति में वात रोग उत्पन्न हो जाता है।
किसी प्रकार से चोट तथा अन्य संक्रमण के कारण भी स्नायु में सूजन हो जाती है और इस सूजन के कारण व्यक्ति को वात ज्वर हो जाता है।
यह रोग स्नायु में किसी प्रकार की सूजन आ जाने के कारण होता है।
वात ज्वर का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-
वात ज्वर से पीड़ित रोगी को प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले कटिस्नान करना चाहिए। इसके बाद रोगी व्यक्ति को एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि पेट साफ हो जाए और शरीर में जो दूषित द्रव्य जमा हो वह शरीर से बाहर निकल जाए तभी यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
जब रोगी व्यक्ति एनिमा क्रिया कर लेता है उसके बाद रोगी को कम्बल में लपेटना चाहिए तथा उसे आराम करने के लिए कहना चाहिए। जिसके फलस्वरूप नाड़ियों (स्नायु) की सूजन ठीक हो जाती है और यह रोग भी ठीक हो जाता है।
वात ज्वर का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक फलों का रस (गाजर, सेब, चुकन्दर, अन्नानस, संतरा) पीकर उपवास रखना चाहिए। इसके बाद रोगी को फल, सब्जी, अंकुरित दाल का सेवन कुछ दिनों तक करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप नाड़ियों का दूषित द्रव्य जल्दी ही नष्ट होकर रोग जल्दी ठीक हो जाता है और नाड़ियों की सूजन ठीक हो जाती है जिसके फलस्वरूप यह रोग भी ठीक हो जाता है।
सोयाबीन को दूध में डालकर उसमें शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से स्नायु की सूजन ठीक हो जाती है जिसके फलस्वरूप वात ज्वर भी ठीक हो जाता है।
वात ज्वर को ठीक करने के लिए ठंडे पानी में कपड़े को भिगोकर इस पट्टी को रोगी के शरीर पर लपेटें और उसके ऊपर से गर्म कपड़ा लपेटना चाहिए। फिर इस पट्टी को बदलते रहना चाहिए। जब भाप की गर्मी शांत हो जाए तब गुनगुने पानी से भीगी पट्टी दर्द वाले भाग पर लगाना चाहिए और इसके ऊपर से गर्म कपड़ा लपेटना चाहिए। जब तक रोग का प्रभाव कम न हो जाए तब तक इस पट्टी को अदल-बदल कर लगाते रहना चाहिए। जब बुखार कम हो जाए तब रोगी के शरीर को गीले तौलिये से पोंछना चाहिए। रात के समय में रोगी की कमर पर कपड़े की गीली पट्टी करनी चाहिए। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने से वात ज्वर ठीक हो जाता है।
वात ज्वर को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को स्नायु की सूजन ठीक करनी चाहिए तभी यह रोग ठीक हो सकता है। इसके लिए रोगी व्यक्ति को कई प्रकार के आसन, यौगिक क्रियाएं तथा स्नान करना चाहिए। जिसके फलस्परूप यह रोग ठीक हो जाता है। ये आसन, योगिकक्रियाएं और स्नान इस प्रकार हैं- रीढ़स्नान, कटिस्नान, मेहनस्नान, योगासन, एनिमा क्रिया तथा प्राणायाम आदि।
वात ज्वर से पीड़ित रोगी को गहरी नींद लेनी चाहिए तथा कम से कम 7 से 8 घण्टे की नींद लेना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले रोग होने के कारणों को दूर करना चाहिए जैसे- मानसिक तनाव, चिंता, भय, डर, वैवाहिक जीवन की असंगति, पारिवारिक क्लेश, आर्थिक कठिनाइयां, प्रेम सम्बन्धी निराशा, यौन सम्बन्धी कुसंयोजन तथा क्रोध, भय, घृणा आदि। फिर इसके बाद इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए तभी यह रोग ठीक हो सकता है।
जानकारी–
इस प्रकार प्राकृतिक चिकित्सा से वात ज्वर का उपचार करने तथा इस रोग के कारणों को दूर करके ही इस रोग को ठीक किया सकता है।