पेट की गड़बड़ियों से बचाव
पेट बुरी तरह दुःख रहा है … आफता चढ़ा है, गैस तट्रबल होने लगी …. यानि कि पेट न हुआ तमाम किस्म की गड़बड़ियों का डिब्बा हो गया और इन गड़बड़ियों का सात संबंद होता है – लिवर या यकृत से |
शरीर में पी जाने वाली ग्रंथियों में य्रकृत (लिवर) सबसे बड़ी ग्रंथि (ग्लेंड) है | अपना काम चलाने के लिए शरीर को जिन स्त्रावों यानि रसों की आवश्यकता रहती है, वे इन्हीं ग्रंथियों से निकलते रहते हैं | पर यकृत रस निकालने के अलावा और भी बहुत से महत्वपूर्ण काम करता है | यकृत से एक प्रणाली में होकर छोटी आँतों में जाता है | जब पित्त की तत्काल आवश्यकता नहीं होती तो वह एक दूसरी प्रणाली द्वारा पित्ताशय (गाल ब्लाडर) में चला जाता है और वहां जमा हो जाता है | आवश्यकता पड़ने पर वह फिर पित्ताशय से छोटी आँतों में ले जाता है |
पित्त के आभाव में आंतें वसा कजो पचा तो तेली हैं पर शरेर उसके अधिकाँश को ग्रहन नहीं कर पाता और फलत: वह बेकार ही शरीर के बाहर निकल जाता है | पची हुई बसा को शरीर द्वारा ग्रहण नहीं कर पाता और फलत: वह बेकार ही शरीर के बाहर निकल जाता है | पची हुई वसा को शरीर द्वारा ग्रहण कराने का कार्य पित्त में मिले हुए कई लवणों द्वारा ग्रहण कराने का कार्य पित्त में मिले हुए कई लवणों द्वारा सम्पन्न होता है |
भोजन के मधुर अंश (कार्बोहाइड्रेट) में सबसे महत्व्पुर्न्ब भाग ग्लूकोज का होता है, जिसे हम सरलता से पचा सकते हैं | शरीरिक क्रिया में यह महत्वपूर्ण कार्य करता है | जो ग्लूकोज आँतों से रक्त में जाता है, वह ग्लैकोजन के रूप में यकृत में जमा होता है | रक्त में ग्लुकोज के लगातार समान रूप में बने रहने का कारण यह भी है कि यकृत में जमा ग्लैकोजन बार-बार ग्लूकोज के रूप में बहतर रक्त में मिलता रहता है | ग्लूकोज को पहले ग्लाइकोजन के रूप में बदलने और ग्लाइकोजन को फिर ग्लूकोज का रूप देने का कार्य यकृत कोष ही करते हैं |
जब शरीर में कहीं चोट लग जाती है और खून बहने लगता है तो जमकर खून के थक्का बन्ने की क्रिया द्वारा रक्त प्रवाह बन्द हो जाता है और खून को इस प्रकार जमाने का कार्य फाईब्रिनोजन नामक पदार्थ के कारण होता है, जो स्वयं यकृत में बनकर तैयार होता है |
शरीर की पाचन-क्रिया के साथ कुछ और भी पदार्थ बनते हैं, जो विषाक्त होते हैं | यदि ये पदार्थ लगातार शरीर में बने रहें तो शरीर को खतरा हो सकता है | यकृत इन विषाक्त पदार्थों दुसरे पदार्थों से मिलाकर ऐसे यौगिक पदार्थों के रुप में बदल देता है, जो हानिकारक नहीं होते और जो गुर्दे के द्वारा शरीर के बाहर निकल जाते हैं |
अपचन के कारण
वास्तव में इसके दो कारण होते हैं – एक तो कार्य प्रणाली में कोई गड़बड़ी, दूसरा इन्द्रिय में | पहले कारण में उपरी तौर पर कोई कारण नजर नहीं आता | इसका कारण होता है, मानसिक और वातावरण | पाचन संस्थान में कोई गड़बड़ी नहीं होती लेकिन रोगी के मानसिक तनाव के कारण इसकी शुरुआत होती है |
अगर आप नर्वस हैं, चिंतित हैं, निराश हैं या जिम्मेदारियों के बोझ से लदे हैं, तब आपका पाचन गड़बड़ा सकता है | यह परेशानी उच्च पदों पर काम करने वाले या सवेंदनशील व्यक्तियों के साथ होती है | मानसिक स्थिति चयापचय प्रक्रिया को सीधे प्रभावित करती है |
कुछ आंते भी रोग को बुलावा देती हैं | आज के जेट युग में अगर दिन भर अप काम में व्यस्त भागते फिर रहे हैं, खाने का समय अनियमित है या जो भी मिल गया जल्दी से खा लिया तो निश्चित रूप से आपकी पाचन क्रिया आपसे विद्रोह कर देगी | कुछ लोग काम के सिलसिले में यात्राएं करते रहते हैं और विभिन्न स्थानों पर विभिन्न तरह का खाना बिना सोचे समझे अधिक खा लेते हैं, तो दुसरे भोजन में स्वाद न हो तो न के बराबर खाते हैं | कूद तली और चटपटी चीजों के दवाने दीवाने होते हैं | ये सारी बातें अपचन को जन्म देती हैं | कड़क चाय, काफी, शराब, तंबाकू के शौकीन भी इस रोग की चपेट में आ सकते हैं | दूसरा कारण है, अन्न नलिका से लेकर पाचन संस्थान की सारी नाड़ियों में से किसी में भी अगर कोई रोग हो तो इससे चयापचय प्रक्रिया प्रभावित होती है |
हमने पाचन संस्थान के बारे में ऊपर काफी विस्तार से बातें कर ली हैं, अब हम संक्षेप में मुख्य कारणों पर एक नजर डालेंगे |
अन्न नली में संक्रमण का सामान्य कारण होता है | आमाशय का कुछ भाग छाती में चला जाता है तो उसे हायटस हर्निया कहते हैं, जिससे मांसपेशियों में ऐंठन, कैंसर इत्यादि बीमारियाँ पेट में होती हैं | इसके अलावा आमाशय में विषमता, अल्सर, पेट के ऊपरी भाग में सिकुड़न, आंत में सुजन या ट्यूटर के कारन अवरोध भी अपचन का कारन बन सकता है | पेचिश, पेट में कीड़े, आंत्रशोथ, अंतड़ियों में अन्य तरह की विषमता, संक्रामक रोग, पित्ताशय में पथरी या यकृत रोग भी अपचन को जन्म दे सकते हैं | गर्भधारण या किसी इंद्रिय के बढ़ जाने के कारण जैसे प्लीहा या अन्य पेट में तरल पदार्थों का जमाव भी इस रोग को जन्म दे सकता है | कुछ और भी कारण हो सकते हैं जैसे-हृदय रोग, गले की सुजन, खून की कमी, किडनी के रोग इत्यादि |
जहाँ तक उपचार का सवाल है, यह रोग खत्म करने के लिए होना चाहिए न कि केवल रोग के लक्षणों को | अच्छा होते ही लक्षण अपने आप गायब हो जाते हैं | हाँ, पाचन इंद्रियों की कार्यप्रणाली में आयी विषमता के कारणों को जानने के लिए हमें रोगी की मानसिक स्थिति के बारे में जानना पड़ेगा | कभी-कभी शमनकारी औषधियां भी एसिड विरोधी गोलियों के साथ देना जरूरी हो जाता है |
कुछ सावधानियां
अगर आप थोड़ी-सी सावधानी बरतें तो आपकी पाचन-शक्ति हमेशा सामान्य बनी रहेगी | भूख से ज्यादा भोजन जहर के समान है | बल्कि पेट पूरा भरने से थोडा पहले ही रुक जाएं तो बेहतर है | हाँ, भोजन से थोड़ा पहल और भोजन के बाद आराम जरूरी है | भोजन जल्दबाजी में न खाकर छोटे-छोटे ग्रास बनाकर खाएं | बहुत थकान, क्रोध या दिमाग अच्छा न हो तो भोजन न करें | भोजन करते समय कोई विवादस्पद विषय न उठाएं |
बहुत ज्यादा तली, चटपटी, गरम, ठंडी, या किसी का जूठा भोजन न लें | कुछ लोग शाम को शराब पीकर देर रात को भोजन करते हैं, यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है | इसी तरह धम्रपान भी स्वास्थ्य का दुशमन है | इसलिए इस्ससे बचें | हायटस हर्निया है वे खान एक तुरंत बाद झुकें नहीं और न ही शरीर को तोड़े-मरोड़ें | बल्कि कम से कम एक घन्टे का आराम उन्हें लाभ पहुंचाएगा | पेट के अल्सर से पीड़ित होने वाले लोगों को थोड़ा-थोड़ा भोजन कई बार खाना चाहिए और गरम, मसालेदार या कोई भी चीज जो एसीडिटी बनाए, ऐसे भोजन से बचना चाहिए |