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दमा 

Asthma

 

Asthma-Symptoms, Reasons, Causes

 

परिचय:-

जब किसी व्यक्ति की सूक्ष्म श्वास नलियों में कोई रोग उत्पन्न हो जाता है तो उस व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है जिसके कारण उसे खांसी होने लगती है। इस स्थिति को दमा रोग कहते हैं।

दमा रोग का लक्षण:-

     दमा रोग में रोगी को सांस लेने तथा छोड़ने में काफी जोर लगाना पड़ता है। जब फेफड़ों की नलियों (जो वायु का बहाव करती हैं) की छोटी-छोटी तन्तुओं (पेशियों) में अकड़न युक्त संकोचन उत्पन्न होता है तो फेफड़े वायु (श्वास) की पूरी खुराक को अन्दर पचा नहीं पाते हैं। जिसके कारण रोगी व्यक्ति को पूर्ण श्वास खींचे बिना ही श्वास छोड़ देने को मजबूर होना पड़ता है। इस अवस्था को दमा या श्वास रोग कहा जाता है। दमा रोग की स्थिति तब अधिक बिगड़ जाती है जब रोगी को श्वास लेने में बहुत दिक्कत आती है क्योंकि वह सांस के द्वारा जब वायु को अन्दर ले जाता है तो प्राय: प्रश्वास (सांस के अन्दर लेना) में कठिनाई होती है तथा नि:श्वास (सांस को बाहर छोड़ना) लम्बे समय के लिए होती है। दमा रोग से पीड़ित व्यक्ति को सांस लेते समय हल्की-हल्की सीटी बजने की आवाज भी सुनाई पड़ती है।

           जब दमा रोग से पीड़ित रोगी का रोग बहुत अधिक बढ़ जाता है तो उसे दौरा आने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक दिक्कत आती है तथा व्यक्ति छटपटाने लगता है। जब दौरा अधिक क्रियाशील होता है तो शरीर में ऑक्सीजन के अभाव के कारण रोगी का चेहरा नीला पड़ जाता है। यह रोग स्त्री-पुरुष दोनों को हो सकता है।

            जब दमा रोग से पीड़ित रोगी को दौरा पड़ता है तो उसे सूखी खांसी होती है और ऐंठनदार खांसी होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी चाहे कितना भी बलगम निकालने के लिए कोशिश करे लेकिन फिर भी बलगम बाहर नहीं निकलता है। दमा रोग प्राकृतिक चिकित्सा से पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

दमा रोग होने का कारण:-

औषधियों का अधिक प्रयोग करने के कारण कफ सूख जाने से दमा रोग हो जाता है।

खान-पान के गलत तरीके से दमा रोग हो सकता है।

मानसिक तनाव, क्रोध तथा अधिक भय के कारण भी दमा रोग हो सकता है।

खून में किसी प्रकार से दोष उत्पन्न हो जाने के कारण भी दमा रोग हो सकता है।

नशीले पदार्थों का अधिक सेवन करने के कारण दमा रोग हो सकता है।

खांसी, जुकाम तथा नजला रोग अधिक समय तक रहने से दमा रोग हो सकता है।

नजला रोग होने के समय में संभोग क्रिया करने से दमा रोग हो सकता है।

भूख से अधिक भोजन खाने से दमा रोग हो सकता है।

मिर्च-मसाले, तले-भुने खाद्य पदार्थों तथा गरिष्ठ भोजन करने से दमा रोग हो सकता है।

फेफड़ों में कमजोरी, हृदय में कमजोरी, गुर्दों में कमजोरी, आंतों में कमजोरी तथा स्नायुमण्डल में कमजोरी हो जाने के कारण दमा रोग हो जाता है।

मनुष्य की श्वास नलिका में धूल तथा ठंड लग जाने के कारण दमा रोग हो सकता है।

धूल के कण, खोपड़ी के खुरण्ड, कुछ पौधों के पुष्परज, अण्डे तथा ऐसे ही बहुत सारे प्रत्यूजनक पदार्थों का भोजन में अधिक सेवन करने के कारण दमा रोग हो सकता है।

मनुष्य के शरीर की पाचन नलियों में जलन उत्पन्न करने वाले पदार्थों का सेवन करने से भी दमा रोग हो सकता है।

मल-मूत्र के वेग को बार-बार रोकने से दमा रोग हो सकता है।

धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के साथ रहने या धूम्रपान करने से दमा रोग हो सकता है।

दमा रोग के लक्षण:-

दमा रोग से पीड़ित रोगी को रोग के शुरुआती समय में खांसी, सरसराहट और सांस उखड़ने के दौरे पड़ने लगते हैं।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को वैसे तो दौरे कभी भी पड़ सकते हैं लेकिन रात के समय में लगभग 2 बजे के बाद दौरे अधिक पड़ते हैं।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को कफ सख्त, बदबूदार तथा डोरीदार निकलता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक कठिनाई होती है।

सांस लेते समय अधिक जोर लगाने पर रोगी का चेहरा लाल हो जाता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

दमा रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन नींबू तथा शहद को पानी में मिलाकर पीना चाहिए और फिर उपवास रखना चाहिए। इसके बाद 1 सप्ताह तक फलों का रस या हरी सब्जियों का रस तथा सूप पीकर उपवास रखना चाहिए। फिर इसके बाद 2 सप्ताह तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए। इसके बाद साधारण भोजन करना चाहिए।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को नारियल पानी, सफेद पेठे का रस, पत्ता गोभी का रस, चुकन्दर का रस, अंगूर का रस, दूब घास का रस पीना बहुत अधिक लाभदायक रहता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी यदि मेथी को भिगोकर खायें तथा इसके पानी में थोड़ा सा शहद मिलाकर पिएं तो रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी दूध या दूध से बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

तुलसी तथा अदरक का रस शहद मिलाकर पीने से दमा रोग में बहुत लाभ मिलता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को 1 चम्मच त्रिफला को नींबू पानी में मिलाकर सेवन करने से दमा रोग बहुत जल्दी ही ठीक हो जाता हैं।

1 कप गर्म पानी में शहद डालकर प्रतिदिन दिन में 3 बार पीने से दमा रोग से पीड़ित रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में जल्दी ही भोजन करके सो जाना चाहिए तथा रात को सोने से पहले गर्म पानी को पीकर सोना चाहिए तथा अजवायन के पानी की भाप लेनी चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपनी छाती पर तथा अपनी रीढ़ की हड्डी पर सरसों के तेल में कपूर डालकर मालिश करनी चाहिए तथा इसके बाद भापस्नान करना चाहिए। ऐसा प्रतिदिन करने से रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

दमा रोग को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार कई प्रकार के आसन भी हैं जिनको करने से दमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। ये आसन इस प्रकार हैं- योगमुद्रासन, मकरासन, शलभासन, अश्वस्थासन, ताड़ासन, उत्तान कूर्मासन, नाड़ीशोधन, कपालभांति, बिना कुम्भक के प्राणायाम, उड्डीयान बंध, महामुद्रा, श्वास-प्रश्वास, गोमुखासन, मत्स्यासन, उत्तानमन्डूकासन, धनुरासन तथा भुजांगासन आदि।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में नमक तथा चीनी का सेवन बंद कर देना चाहिए।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में रीढ़ की हड्डी को सीधे रखकर खुली और साफ स्वच्छ वायु में 7 से 8 बार गहरी सांस लेनी चाहिए और छोड़नी चाहिए तथा कुछ दूर सुबह के समय में टहलना चाहिए।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को चिंता और मानसिक रोगों से बचना चाहिए क्योंकि ये रोग दमा के दौरे को और तेज कर देते हैं।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेट को साफ रखना चाहिए तथा कभी कब्ज नहीं होने देना चाहिए।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के साथ नहीं रहना चाहिए तथा धूम्रपान भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से इस रोग का प्रकोप और अधिक बढ़ सकता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी और उसके बाद गुनगुने जल का एनिमा लेना चाहिए। फिर लगभग 10 मिनट के बाद सुनहरी बोतल का सूर्यतप्त जल लगभग 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन पीना चाहिए। इस प्रकार की क्रिया को प्रतिदिन नियमपूर्वक करने से दमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 2-3 बार सुबह के समय में कुल्ला-दातुन करना चाहिए। इसके बाद लगभग डेढ़ लीटर गुनगुने पानी में 15 ग्राम सेंधानमक मिलाकर धीरे-धीरे पीकर फिर गले में उंगुली डालकर उल्टी कर देनी चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने रोग के होने के कारणों को सबसे पहले दूर करना चाहिए और इसके बाद इस रोग को बढ़ाने वाली चीजों से परहेज करना चहिए। फिर इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कराना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी घबराना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करने से दौरे की तीव्रता (तेजी) बढ़ सकती है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी को कम से कम 10 मिनट तक कुर्सी पर बैठाना चाहिए क्योंकि आराम करने से फेफड़े ठंडे हो जाते हैं। इसके बाद रोगी को होंठों से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में हवा खींचनी चाहिए और धीरे-धीरे सांस लेनी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को गर्म बिस्तर पर सोना चाहिए।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपनी रीढ़ की हड्डी की मालिश करवानी चाहिए तथा इसके साथ-साथ कमर पर गर्म सिंकाई करवानी चाहिए। इसके बाद रोगी को अपनी छाती पर न्यूट्रल लपेट करवाना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से कुछ ही दिनों में दमा रोग ठीक हो जाता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी के लिए कुछ सावधानियां:-

दमा रोग से पीड़ित रोगी को ध्रूमपान नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से रोगी की अवस्था और खराब हो सकती है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में लेसदार पदार्थ तथा मिर्च-मसालेदार चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को धूल तथा धुंए भरे वातावरण से बचना चाहिए क्योंकि धुल तथा धुंए से यह रोग और भी बढ़ जाता है।

रोगी व्यक्ति को मानसिक परेशानी, तनाव, क्रोध तथा लड़ाई-झगड़ों से बचना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को शराब, तम्बाकू तथा अन्य नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि ये पदार्थ दमा रोग की तीव्रता को बढ़ा देते हैं।

 

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